Book Title: Shrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
21
AUGUST-2014
मनोवृत्तिना कारणे दरेक साधु पोताना शिष्यो वधे ए दिशामां विचारता ने शिष्यो नाववाना प्रयत्न करता. बाळकोने तेमना माताता-पितानी आज्ञा वगर ज साधुओ गुप्त रीते साधुनो वेश पहेरावी देता. परंतु बुद्धिसागरजी म. सा. आवी प्रवृत्तिनी विरुद्ध हता.
ते समये एमने लोकमुखे एवा समाचार सांभळ्या के ए एक साधु महात्माए पोताने १०८ शिष्यो करवानी प्रतिज्ञा लीधी छे. आवी वातोथी बुद्धिसागरजी म. साहेबने दुःख थतुं अने विचारता के आवा शिष्यो कई रीते धर्मने समजे, समजावे जे शिष्यो समज्या विना साधुताने वरे छे ते भविष्यमां साधुनो वेश छोडी दे तो समाजमां जैन धर्म वगोवाय अने जैनशासननी अवहेलना थाय ते वात जुदी. तेमने पोताने आ रीते शिष्यो बनाववानी रीत बिलकुल पसंद न हती, परंतु ते पोते पोताना शिष्यो अमरता पामे, समाजनुं कल्याण सधाय एवा शिष्यो तैयार करवा अंगे विचारता.
महापुरुषो हंमेशा खराब तत्त्वमांथी पण सारुं ग्रहण करी लेता होय छे. ए समयमां कोई साधुनी १०८ शिष्योनी प्रतिज्ञा सांभळी पू. आचार्य भगवंतश्री १०८ ग्रंथो रचवानी प्रतिज्ञा ग्रहण करी. आ ग्रंथो मारा काळधर्म बाद पण परमात्माना विचारोने परमात्मानी आज्ञाने समाजमा फेलावे, समाजना लोकोमां खूणे खूणे पहोंचाडे अने ते मारफत समाजनुं कल्याण सधाय एवा १०८ अमर ग्रंथो हुं तैयार करीश. आवी प्रतिज्ञाना परिणामे जैनशासनने १०८ करतां पण वधु ग्रंथो प्राप्त थया.
आचार्यश्रीनां प्रवचनोथी गुजरातमां ज नहि परंतु मारवाड, मेवाड, महाराष्ट्र विगेरे जे प्रदेशमा एमनुं विचरण थयुं त्यां त्यां आत्म तत्त्वनी ज्योत सतेज प्रज्वलित बनी. पूज्य योगनिष्ठ आचार्य श्रीए ए समयना विद्वान साहित्यकारो जेवा के महाकवि श्री नानालाल, केशव हर्षद ध्रुव तेमज पंडित मदनमोहन मालविया अने लाला लजपतराय साथे पण अनुक्रमे साहित्यनी अने राष्ट्रोन्नतिनी चर्चाओ अने अति उत्तम
टीना विचानुं आदान प्रदान करेलुं जोवा अने वांचवा मळे छे.
समाजोन्नति माटे व्यसनोनो निषेध, कुरिवाजो दूर करवा, अन्य धर्मो प्रत्ये समभाव राखवो अने समाजना नीचला वर्गो माटे निशाळोनी स्थापना कराववी वगेरे कार्योमां पण पूज्यश्रीए ऊंडो रस लीधो हतो. आम धर्मनी साथे साथे समाज अने राष्ट्र निर्माणनी प्रवृत्तिओमां एमनुं कार्यक्षेत्र विस्तरेलुं अने विकसेलुं हतु.
(पूज्य श्री द्वारा रचित केटलांक तात्त्विक ग्रंथोनी अने एमनी प्रेरणाथी स्थपायेल केटलीक विरल कोटीनी संस्थाओ द्वारा श्री संघना योगदाननी विशेष वातो आ ज लेखनी श्रेणिमां क्रमशः रजु करवामां आवशे.)
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