Book Title: Shrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 श्रुतसागर अगस्त-२०१४ ___ग्रन्थ के आरम्भ में ही आगमों के नाम व उसके संकेत दिए गए हैं, जैसेआयारो-आया०, सूयगडो-सूय०, भगवती-भग० आदि. इसके अतिरिक्त मूलाक्षर के अनुसार संकेत व आगमों के अनुक्रम दिए गए हैं. इस कोश में मूल शब्दों का संस्कृत व गुजराती अर्थ के साथ संबंधित आगम के सांकेतिक नाम के साथ सूत्र संख्या दी गई है. आगम के मूल शब्दों को बोल्ड टाईप में लिए गए हैं, उसके आगे कोष्ठक में इटालिक टाईप में संस्कृत अर्थ हैं और उसके बाद सामान्य टाईप में गुजराती अर्थ दिए गए हैं. उसके नीचे आगम का संक्षिप्त नाम तथा उसके बाद सूत्र का क्रमांक दिया गया है. जैसे- भग. ४५, अर्थात् भगवतीसूत्र के ४५वें सूत्र में ढूँढने से वह शब्द मिल जाएगा. जहाँ चौकोर कोष्ठक में “दे" शब्द लिखा हो, इसका अर्थ है कि वह शब्द देशी है. यदि गुजराती शब्द ऊपर दिए गए शब्द के अनुसार ही हो, वहाँ “ऊपर" इसप्रकार लिखा है. आगम शब्दकोश के प्रकाशन से हस्तलिखित आगमिक ग्रंथों के सूचीकरण कार्य से जुड़े हुए विद्वानों, संशोधकों एवं संस्थाओं को बहुत ही सुविधा मिल रही है. वे इस प्रकाशन का भरपूर उपयोग अपने कार्य में संदर्भग्रंथ के रूप में कर रहे हैं. इस प्रकाशन के सहयोग से अपूर्ण आगमिक प्रतों का नाम निम्न विधि से ज्ञात किया जा सकता हैं - हस्तप्रत के एक ही वाक्य या पैराग्राफ में रहे अल्प प्रचलित दो-तीन या चार शब्दों को सर्वप्रथम क्रमशः आगम शब्दकोश में ढूँढा जाता है. प्रथम शब्द मिलने पर फिर आवश्यकतानुसार क्रमशः दूसरे-तीसरे शब्दों को भी इसी प्रकार मिलान किया जाता है कि ये दोनों-तीनों शब्द किसी एक ही आगम में एक ही सूत्रांक पर मिल रहे हैं? यदि दो शब्दों के आधार से निर्णय करने में असुविधा हो, अनेक विकल्प मिल रहे हों, तो तीन शब्दों की तुलना की जाती है. तीन शब्दों पर भी काम न चले तो चार शब्दों को पकड़ा जाता है. फिर एक या दो विकल्प बचते हों तो उस-उस आगम में उस-उस जगह पर जाकर पाठ मिलाकर तय किया जाता है. उपरोक्त विधि से किसी भी अपूर्ण आगमिक हस्तप्रतों में रहे योग्य कृति का निर्धारण किया जा सकता है और यत्र-तत्र बिखरे पड़े हस्तप्रतों को एक साथ मिलाया जा सकता है. कहने का तात्पर्य यह है कि यह प्रकाशन जैन विद्या के क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों/संशोधकों के लिए कोई भी इस तरह का आगमिक संदर्भ ढूँढने हेतु आशीर्वादरूप सिद्ध हो रहा है. यह प्रकाशन जैन साहित्य के क्षेत्र में एक सीमाचिह्न रूप में पूज्यश्री की प्रस्तुति है. संघ, विद्वद्वर्ग, जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं. सर्जनयात्रा जारी रहे, ऐसी शुभेच्छा है. ___अन्ततः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रस्तुत प्रकाशनजैन साहित्य गगन में देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति जिज्ञासुओं को प्रकाशित करता रहेगा. पूज्य मुनिश्रीजी से आग्रहभरा निवेदन है कि वे शेष आगम पंचांगी के शब्दों हेतु भी कोश तैयार करने का अनुग्रह करें. उनके इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन. For Private and Personal Use Only

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