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AUGUST-2014 भाषा का विकास एवं विस्तार प्रारंभ हो जाता है। लिपि के द्वारा ही भाषा में अधिक सूक्ष्मता और निश्चितता आती है।
* विदित हो कि प्राचीनकाल में धर्म, साहित्य तथा इतिहास का लिपि से उतना घनिष्ट संबन्ध नहीं था जितना आज है। आज लिपि के अभाव में साहित्य, इतिहास आदि का होना असंभव-सा प्रतीत होता है, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । लिपि के अभाव में भी साहित्य, इतिहास आदि हो सकते हैं और थे भी। अन्तर सिर्फ इतना हो जाता है कि लिपि के अभाव में वे अनिश्चित से रहते हैं; धर्म मंत्र-तंत्र का, साहित्य कविता का और इतिहास लोक-कथाओं का रूप ग्रहण कर लेता है। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित कहानियाँ तथा विभिन्न देशों की परंपरागत लोक-कथाएँ इसके उदाहरण हैं।
* जिस प्रकार लेखनकला के अभाव में साहित्य का होना संभव है, उसी प्रकार वर्णमाला के अभाव में लिपि का होना भी संभव है। वर्णमाला के अभाव में मनुष्य रज्जु, रेखा-चित्र, लीपने, माढने आदि द्वारा अपने भावों तथा विचारों को लिपिबद्ध करता था। अतः लिपि के अन्तर्गत वर्ण-लिपि के अतिरिक्त रज्जु-लिपि, रेखा-लिपि, चित्र-लिपि आदि को भी सामिल किया जा सकतता है।
* भाषा ध्वन्यात्मक होती है जबकि लिपि चिह्नात्मक अथवा अक्षरात्मक होती है। भाषा बोली जाती है जबकि लिपि लिखी जाती है। अर्थात् भाषा का उद्गम स्थान मुख है जबकि लिपि हाथ द्वारा लिखी जाती है।
* भाषा को दीर्घकाल पर्यन्त जीवित रखने का काम लिपि करती है। अर्थात् लिपि भाषा को स्थायित्व प्रदान करती है। भाषा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का काम भी लिपि ही करती है। प्राचीनकाल में यह कार्य पत्र द्वारा संदेशा भेजने के रूप में किया जाता था, जिसमें काफी समय लगता था। लेकिन आज वैज्ञानिक साधनों के विकास के साथ यह कार्य ईमेल, एस.एम.एस, फैक्स अथवा वॉटस्अप द्वारा तुरन्त हो जाता है।
* मुख से बोला गया शब्द शीघ्र ही बदला जा सकता है, परन्तु लिखी गई बात को बदलना सरल नहीं होता है। बोली हुई वाणी तुरन्त ही वायु में विलीन होकर नष्ट हो जाती है, लेकिन लिखित बातें हजारों वर्षों तक स्थिर रहती हैं।
* लगभग दो हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन सम्राट अशोक के शिलालेख तत्कालीन ब्राह्मी लिपि के कारण आज भी हमारी मूल्यवान निधि के रूप में सुरक्षित हैं। अतः यह निश्चितरूप से कहा जा सकता है कि हमारे सामने आज जितना भी पुरातन साहित्य विद्यमान है, वह लिपि के स्थायित्व का ही परिणाम है। भाषा और साहित्य की सुरक्षा के लिए भी लिपि ही एकमात्र साधन है। इस प्रकार मानवजाति के विकास में भाषा और साहित्य का जो महत्त्व है, लिपि का भी उससे कम नहीं माना जा
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