Book Title: Shrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR ___AUGUST-2014 ५. दीवार आदि की ओट में छिपकर स्त्रियों के कामविकारजनक शब्द न सुनें, तात्पर्य यह है कि स्त्रियों के कूजन, गूंजन, गायन, रोदन, हास-परिहास आदि विकारजन्य हाव-भावपरक चेष्टाएँ न देखें और न सुनें. ६. पूर्वावस्था में की हुई रति-क्रीडा, आमोद-प्रमोद आदि का चिंतन-स्मरण न करें. ७. सरस, स्वादिष्ट, पौष्टिक आहार न करें, अर्थात् रसनेन्द्रिय को सुखकारक आहार ग्रहण न करें. ८. नियत प्रमाण से अधिक आहार-पानी का सेवन न करें, अर्थात् परिमित आहार लें. ९. शरीर विभूषा न करें, अर्थात् अंगराग,आभूषण, सुन्दर परिधान आदि न करें. १०. पांच इन्द्रियों के विषय-शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श के विषयों में आसक्त न होवें. ___ इस प्रकार ब्रह्मचर्य का समुचित पालन व रक्षण हेतु शास्त्रों में दिये गये निर्देशों को जनभाषा में १० ब्रह्मचर्य समाधिस्थान का सुन्दर वर्णन किया गया है. ब्रह्मचर्यरूपी वृक्ष को मन में रोपकर श्रद्धारूपी विमल जल, सम्यक्त्वरूपी गुणों से इस वृक्ष के मूल को दृढ करें. इसी प्रकार पत्र, शाखा, तना आदि वृक्ष के अवयवों को समुचित उपमा द्वारा अन्तर्मन में ब्रह्मचर्यवृक्ष आरोपण करने हेतु कर्ता ने अपने उपदेशयुक्त निर्देशों के द्वारा कण्टकाकीर्ण मार्ग को निष्कण्टक बनाने का प्रयास किया है. ___ ब्रह्मचर्य रक्षण से संबंधी दूसरे ग्रंथों में सुन्दर उपाय बताये गये हैं- मूलाचार में शीलविराधना के १० कारण वर्णित हैं. अनगारधर्मामृत में १० नियमों में से ३ भिन्न नियम बताये गये हैं. वैदिक ग्रंथ अंतर्गत स्मृति में भी ब्रह्मचर्यरक्षा के लिये स्मरण, कीर्तन, केलि, प्रेक्षण, गुह्यभाषण, संकल्प, अध्यवसाय और क्रियानिष्पत्ति इन ८ मैथुनप्रेरक प्रकारों से बचने के लिया कहा गया है. ___ अंत में कर्ता अपनी विनम्र भावना दर्शाते हुए अंतिम कड़ी में उल्लेख करते हुए बताते हैं कि - साधक ब्रह्मचर्यरक्षा हेतु नववाडरूप ब्रह्मचर्यतरु को हृदय में आरोपण करता है, कथित १० स्थानक के अनुसार संयमित रहता है, वह ब्रह्मचर्यवृक्ष के मोक्षरूप फल का आस्वादन करता है. ऐसे ब्रह्मचारी व सुकृतधारी ब्रह्मचारी को पासचंद (पार्श्वचंद्र) नमन करता है. कर्ता का संक्षिप्त परिचय - स्वनामधन्य नागपुरीय बृहत्तपागच्छाचार्य श्री पार्श्वचंद्रसूरि से विद्वदजगत् एवं श्रमण परंपरा में इनसे भला कौन अनजान होगा. For Private and Personal Use Only

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