Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 9
________________ अहम्. श्रेष्ठि देवचन्द लालभाई जैनपुस्तकोद्धार-ग्रन्थाङ्केसिरिरयणसेहरसूरिहिं संकलिया (रत्नशेखरसूरिसंकलिता) तस्सीसहेमचंदेण साहुणा लिहिया सिरिसिरिवालकहा ॥ ध्यात्वा नवपदी भक्त्या, श्रीश्रीपालमहीभुजः । चरित्रं कीर्तयिष्यामि, रम्यं संस्कृतभाषया ॥१॥ अरिहाइनवपयाई, झाइत्ता हिअयकमलमज्झमि । सिरिसिद्धचकमाहप्पमुत्तमं किंपि जंपेमि ॥१॥ अत्थित्थ जंबुदीवे, दाहिणभरहहमज्झिमे खंडे । बहुधणधन्नसमिद्धो, मगहादेसो जयपसिद्धो॥२॥ जत्थुप्पन्नं सिरिवीरनाहतित्थं जयंमि वित्थरियं । तं देसं सविसेसं, तित्थं भासंति गीयत्था ॥ ३॥ अहंदादिनवपदानि हृदयकमलमध्ये ध्यात्वा उत्तम श्रीसिद्धचक्रस्य-यन्त्रराजस्य माहात्म्यं किमपि जल्पामि-कथयामि ॥१॥ अस्मिन् जम्बूद्वीपे दक्षिणभरताद्देस्य मध्यमे खण्डे बहधनधान्यसमृद्धो जगत्प्रसिद्धो मगधाख्यो देशोऽस्ति ॥ २॥ यत्र मगधाख्ये| देशे उत्पन्नं श्रीवीरनाथस्य तीर्थ जगति विस्तृत-विस्तारं प्राप्तम, तं देशं गीतार्थाः सविशेष तीर्थ भाषन्ते-वदन्ति ॥ ३ ॥ सि.सि.१ in Education a l For Private Personel Use Only w.jainelibrary.org

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