Book Title: Shrimadbhi Pratyekbuddhairbhashitani Rushibhashit Sutrani
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 13
________________ झयण ऋषिभाषि సార్లు పలు రక ముం ఉపాసులను కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు అపు, घाते इन फलें। फलस्यो मिची मुलं, फलघाती या सिंचती ॥ ४॥ लुप्पती जस्स में अस्थि, पासंतं किंचि लुप्पती। संतातो। लुप्पतो क्रिन्थि, पालन कित्रिपातो ॥५॥ अस्थि मे तेण देति , नथि मे तेण देह मे । जइ से होज ण में देज्जा , णत्थि से तेण देति मे॥ ६ ॥ रबं से सिद्ध ॥ १३ ॥ भयालिनामक यण॥ १३ ॥ जुत्त' अजुत्तजोणं ग पमाण मिति बाहुकेण अरहता इसिणा बुइत - अप्पणिया खलु भो अप्पाणं समुक्कसिया, ग भवंति बन्चिंधे परवातो अणिया खलु भो र अप्पाणं समुक्कसिय समकसिय भवति वदचिंधे सेट्ठी, एवं बेन आणुयोये जाणह स्खलु भो लमणा माहगा गामे अदुवा रपणे अदुवा गामे जोऽवि रण्णे अभिणिस्सए इमं लोयं परलोयं पंणिम्सए, दुहओऽवि लोके अपतिहिने, अकामए पाहुए मतेति , अकामए चरए त अकामए कालगए णरके पत्ते, अकामए पव्वइए अकामते चरते तवं अकामएकालगए लिद्धिपत्त अकामप, सकामए. पव्वइए सकामए चरते तवं सकामए कालगते णरगे व(ग)ते, सकामए चरते नवं लकामा कालगते लिद्धिं गत्ते सकामए ॥ ॥ एवं से सिद्ध बुद्धे ॥ बाहुकणामज्झयण॥ १४॥ सिद्धि । सायादुबरखेण अभिभूते दुक्खी दुवख उदीरेति, असातादुक्खेण अभिभूए दुक्खी दुक्ख उदीरेति । सातादुक्खेण अभिभूए जाब णो असातादुक्खेषा अभिभूते दुक्खी दुक्ख' उदीरेति । सातादुक्खेण अभिभूतस्स दुक्खिणो दुक्ख' उदीरेति, असातादुक्खेण अभिभूयस्स दुविखणो दुबत्र उद्दीरेति, लातादुत्रेण अभिभूतस्स: दुक्खिणो दुक्ख उदीरेति । पुच्छा य बागरणं च-संतदुक्खी दुक्ख K: उदीरेति ? असंतदुक्षी दुवन उदीरेति ? संत' दुबखी दुक्ख उदीरेइ ? , सातादुक्खेण अभिभूतस्स उदीरेति, णो असंत' दुक्खी दुक्ख " उदीरेइ, मधुरायणेण: आरहता इसिणा बुइत-दुक्खेण खलु भो अप्पहीोणं जीए आगच्छति हत्थच्छेयणाइ पादच्छेयगाई एवं. णवमझ ॥

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