Book Title: Shrimadbhi Pratyekbuddhairbhashitani Rushibhashit Sutrani
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 11
________________ ॥६॥ अभिजामि । * धूता मिच्छ विप्पडिवन्ना को मे तं सद्दहिस्सति ? 1, कालक्कमणीतिसत्थविसारदे तेतलिपुत्ते विसाद गतेति को मे तसद्दहिस्सति ?, तेत- ।। १०-११ तेतलिपुत्तेण अमच्चोण गिहं पविसित्ता तालपुडके विसे खतितेत्ति सेविय से पडिहतेति को मे तसद्दहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण अमच्चेणं महति- लपुत्तमख: लिपुतज्झयणं महालयं रुक्खं दुरुहित्ता पासे छिपणे (तहावि ण मए) को मे त सद्दहिस्सति ?, तेतलिपुत्तेण महतिमहालयं पासाणं गीवाए बंधित्ता अत्थाहाए पुक्खरिणीए अप्पा पक्खित्ते तत्थऽवि य णं थाहे लद्धे को से तं सद्दहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण महतिमहालियं कट्ठरासी पलीवेत्ता अप्पा पक्खित्ते सेऽवि य से अगणिकाए विज्झाए को मे त सद्दहिस्सति ?, तए गं ला पुट्टिला मूसिायारधूता पंचवण्णाई सखि खिणिताई वत्थाई पवर परिहिता अंतलिक्खपडिवण्णा एवं चयासी-आउसो ! तेतलिपुत्ता ! एहि तो आयाणाहि पुरओ विच्छिण्णे गिरिसिहरकंदरप्पवाते पिट्ठओ कंपेमाणेव्व मेइणितलं साकड़तेव पायवे णिप्फोडेमाणेव्व अंबरतलं, सव्वतमोरासिव्व पिडिते, पच्चक्खमिव सयं कतते भीमरवं करते महावारणे समुहिए वा सचक्षुणिवाएसु पयंडधणुजंतविप्पमुक्का पुंक्खमेत्तावसेला धरणिप्पवेसिणो सरा णिपतंति, हुयबहजालासहस्ससंकुलं समंततो पलित्त धगधगेति सब्बारां, अचिरेण य बालसूरगुंजद्धपुंजणिकरपकासं कियाइ इंगालभूत' गिह, आउसो ! तेतलिपुत्ता ! क वयामो ?, तते णं से तेतलिपुते अमच्चे पोटिलं मूसियारधूत एवं क्यासि—पोट्टिले ! एहि ता आयाणाहि, भीयस्स खलु भो एव्वज्जा, अभिउत्तस्स सवहणकिच्च मातिस्स रहस्सकिच्चं उक्कंठियस्स देसगमणकिच्छ पिवासियस्स पाणकिच्वं छुहियस्स भोयणकिच्च पर अभिउंजिउं कामस्स सत्यकिच्चं खतस्स दंतस्स गुत्तस्स जिति दियस्स पत्तो ते एकमवि ण भवइ ॥ एवं से सिद्ध बुद्ध० ॥१०॥ तेतलिपुत्तणामझयण' सहिअ णेव आणच्च मुणी संखाए अणच्चाए से तातिते, मंखलिपुत्तेण अरहता इसिणा वुझ्यं-से एजति वेदति खुमति घट्टति फ'दति चलति उदीरेति त' तं भावं परिणमति ण ततिा से ,से णो एजति णो यो खुयो घ० णो फ० णो च० णो उ०यो त त' भावं परिणमति से ॥६॥ 001555--0540-65- NAGAROORGBg

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