Book Title: Shravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth Author(s): Rajkrishna Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 7
________________ दो शब्द इसी वर्ष कार्तिकी मेले पर कलकत्ता गया था। साथ में श्रद्धेय श्री पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार भी थे। रात्रि में श्री बाबू छोटेलालजी से परामर्श हुआ कि गोम्मटेश्वर के महामस्तकाभिषेक के अवसर पर यदि श्रवणवेल्गोल पर कोई पुस्तक तैयार हो जाय तो उपयोगी होगी। बाबूजी ने इस सुझाव का स्वागत ही नहीं किया, अपितु रॉयल एशियाटिक सोसाइटी की लायब्रेरी से प्राक्तन-विमर्ष-विचक्षण रावबहादुर श्री आर नरसिंहाचार की अग्नेज़ी की पुस्तक 'श्रवणवेल्गोल' लाकर मुझे प्रोत्साहित किया। उन्हीकी प्रेरणा पर उनके परम मित्र श्री टी एन रामचन्द्रनजी, एम ए डिप्टी डाइरेक्टर-जनरल पुरातत्त्व विभाग ने भूमिका लिखने की कृपा की। उनकी भूमिका ने इस पुस्तक मे चार चाद लगा दिए। इस पुस्तक का सारा श्रेय वाबू छोटेलालजी को है। पुस्तक लिखने का मेरा यह प्रथम प्रयास है। अत इसमे त्रुटिया रह जाना स्वाभाविक है। यदि पाठक उन त्रुटियो से मुझे सूचित करेंगे तो द्वितीय सस्करण मे उन्हे ठीक कर दिया जायगा। प० जुगलकिशोरजी मुख्तार वीरसेवामन्दिर के संस्थापक एव अधिष्ठाता है। उनके नाम से जैन समाज का प्रत्येक मनुष्य परिचित है। यह पुस्तक वीरसेवामन्दिर की ओर से प्रकाशित हो रही है। अत इस अवसर पर मै मुख्तार साहब का आभार स्वीकार करता हूँ। भाई माईदयालजी ने समय-समय पर कई सुझाव दिये। बाहुबली की कुण्डली श्री १० नेमीचन्द्रजी ज्योतिपाचार्य की वनाई हुई है। एक कविता श्री कल्याणकुमारजी जैन 'शशि' की है और दूसरी कविता स्वर्गीय श्री भगवत की । अत मैं इन सबका भी आभारी हूँ।Page Navigation
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