Book Title: Shravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Author(s): Rajkrishna Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 6
________________ प्रकाशकीय यह पुस्तक अपने नामानुकूल श्रवणवेल्गोल तथा दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थों का अच्छा पथप्रदर्शन करनेवाली है--सक्षेप में उनके परिचय तया इतिहास को लिये हुए है और अच्छे रोचक ढग से लिखी गई है । इसके लिखने मे लेखक महानुभाव ला० राजकृष्णजी ने काफी श्रम उठाया है और तभी यह इतने थोडे समय मे तैयार हो सकी है। आप अपने इस प्रथम प्रयास में सफल हुए है। आगा है वीरसेवामन्दिर के निमित्त को पाकर आप भविष्य मे अच्छी साहित्यिक-प्रगति कर सकेगे । महान् रिसर्च-स्कॉलर एव पुरातत्त्व विभाग के डिप्टी डाइरेक्टर जनरल श्री टी० एन० रामचन्द्रन्जी की भूमिका ने पुस्तक पर कलश का काम किया है और उसकी उपयोगिता को बहुत कुछ बढा दिया है । यह पुस्तक हर यात्री को एक मार्ग-प्रदर्शक साथी का काम देगी और इसलिए सभी को अपने साथ रखनी चाहिए। जो लोग यात्रा मे नही है वे घर बैठे इससे यात्रा का कितना ही आनन्द ले सकेगे। यही सब सोचकर आज, गोम्मटस्वामी के महामस्तकाभिषेक के अवसर पर, इसे पाठको के हाथो में देते हुए बडी प्रसन्नता होती है। जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर

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