Book Title: Shravakachar Sangraha Part 2 Author(s): Hiralal Shastri Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur View full book textPage 5
________________ 0 प्रकाशकीय निवेदन 0 यह श्रावकाचार संग्रह ग्रन्थ उपासकाध्ययनांगका चरणानुयोगका प्रकाशक अनुपम ग्रन्थ है । इसमें सब श्रावकाचारोंका संग्रह एकत्रित किया है। श्रावकधर्मका स्वरूप क्या है, आत्मधर्मके उपासककी दिनचर्या कैसी होनी चाहिये, परिणामोंकी विशुद्धि के लिये क्रमपूर्वक व्रत-संयमका अनुष्ठान नितांत आवश्यक है इसका विस्तारपूर्वक विवरण इस ग्रन्थका पठन-पाठन करनेसे ज्ञात हो सकता है। स्व. श्रीमान् डा. ए. एन उपाध्ये ने सब श्रावकाचार ग्रंथोंको नामावली भेजकर यह ग्रन्थ प्रकाशित करनेके लिये मूल प्रेरणा दी इसलिये यह संस्था उनकी कृतज्ञ है । श्रावकाचारके इस भागका संपादन एवं हिंदी अनुवाद स्व. पं. हीरालालजी शास्त्री ब्यावर ने तैयार करके ग्रंथमालाको जिनवाणीका प्रचार करने में सहयोग दिया है, जिसके लिये हम उक्त जैनधर्मसिद्धांतके मर्मज्ञ विद्वान्को हार्दिक धन्यवाद समर्पण करते है । इस ग्रन्थका मुद्रण कार्य सुचारु रूपसे करने में कल्याण प्रेस, सोलापुर के संचालक वर्गने सहयोग दिया है इसलिये हम उनका भी आभार मानते हैं । ___ अंतमें इस ग्रन्थका पठन-पाठन घर-घरमें होकर श्रावकधर्मकी प्रशस्त तीर्थप्रवृत्ति अखंड प्रवाहसे सदैव कायम रहे यह मंगल भावना प्रकट करते हैं। -रतनचंद सखाराम शहा मंत्री ( जीवराज जैन ग्रंथमाला, सोलापूर ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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