Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

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Page 8
________________ जाता है। लोग जैन सन्तों पर नुक्ता चीनी अवश्य करते हैं किन्तु मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि जैन मुनिरत्नों ने जैन धर्म के प्रचार का भार अपने ऊपर न लिया होता तो जो भी जैन धर्म का प्रचार और जैनागमों का पठन पाठन आज दृष्टिगोचर होता है उस का भी प्रभाव होता । व्यापारी लोग जैन धर्म के वर्तमान प्रचार को भी कायम रखने में समर्थ न हो पाते । अस्तु, जैनधर्म के प्रचार, सामान्य ज्ञान और सुधार को ही दृष्टि में रखकर 'श्रमण-संस्कृति की रूपरेखा' नामक ग्रन्थ की रचना की गई है । श्रमण शब्द जैन और बौद्ध दोनों के लिये प्रयुक्त होता है किन्तु यहां जैन से ही अभिप्राय है। संस्कृति शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है । संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाले सम्पूर्ण विषयों पर इस ग्रन्थ में प्रकाश नहीं डाला गया है । जो कला आदि विषय अवशेष रह गए हैं उन पर दूसरे ग्रन्थ में प्रकाश डाला जाएगा। पञ्जाब विभाजन के समय मुझे अपना पुस्तकालय लाहौर में ही छोड़ कर आना पड़ा। इस ग्रन्थ के कुछ अध्याय तो मैंने लाहौर में ही लिख डाले थे, शेष यहां आकर तैयार किये। यहां लिखते समय अभीष्ट सभी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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