Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha Author(s): Purushottam Chandra Jain Publisher: P C Jain View full book textPage 6
________________ (क) * नम्र निवेदन भारतीय इतिहास में, जैन धर्म, जैन संस्कृति और जैन दर्शन का कितना ऊँचा स्थान है यह किसी से छिपा नहीं है। जिस भौतिकवाद की भयानकता से तंग आकर आज विश्व के सभी राष्ट्र आध्यात्मिकवाद के सर्वोत्तम सन्देश विश्व शान्ति की स्थापना' के महत्व को समझने लगे हैं उस विश्व शान्ति के सन्देश को जैन धर्म अनादिकाल से देता आया है । जैन धर्म के सिद्धान्तों की उत्कृष्टता निर्विवाद सिद्ध है। इस महान् धर्म के अहिंसावाद, कर्मवाद और अनेकान्तवाद के सिद्धान्त सदा विश्व में इस की कीर्ति को प्रसारित करते रहेंगे। किन्तु समय का चक्र बड़ा विचित्र है। वह जैनधर्म जो कभी विश्वधर्म होने का दावा करता था, कुछ सदियों से अवनति की ओर जा रहा है और उस का प्रचार कम हो रहा है । इस का मूल कारण यही है कि जैन धर्म के अनुयायी अपने आदर्शधर्म के वास्तविक सिद्धान्त को न समझ कर पथभ्रष्ट होते जा रहे हैं। जैनदर्शन के सिद्धान्तों का महत्त्व उत्तरोत्तर केवल शास्त्रीय विभूति के रूप में ही रहता जाता है । जैन समाज के जीवन में उन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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