Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

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Page 12
________________ इस के पढ़ने से जहां जैन संस्कृति का विद्वान् आनन्द ले सकता है वहां सामान्य पाठक भी लाभ उठा सकता है। देखने में आता है कि अजेन जनता में जैन धर्म के बारे में अनेक भ्रमभूलक धारणाएँ पाई जाती हैं, इस पुस्तक में बड़े रोचक ढङ्ग से उनका निराकरण किया गया है । पहला अध्याय पढ़ने से पता चलता है कि जैनधर्म को प्राचीनता के विषय में लोगो के कैसे विचित्र और असत्य विचार हैं। श्री पुरुषोत्तम चन्द्र जी ने एकएक को ले कर उन का खण्डन किया है । इसी प्रकार जैनधमे और राजनीति, के प्रकरण में वेदिक राज़नीति की अपेक्षा जैन राजनीति की विशेषताएँ बड़े ही सुन्दर ढङ्ग से वर्णन की गई हैं। जैनी लोग अपने राजनैतिक स्वतन्त्र विधानों से प्रायः अपरिचित हैं । उन विधानों का दिग्दर्शन इस प्रकरण में कराया गया है। 'अनेकान्तवाद' और 'श्रमण-सस्कृति में ईश्वर का स्थान' इन अध्यायो में ग्रन्थ कर्ता की दार्शनिक विद्वत्ता का पता चलता है। दार्शनिक विश्लेषण के साथ २ कर्ता ने सामाजिक सुधार की दृष्टि नहीं खोई । यही बात अन्य अध्यायों की है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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