Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya

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Page 7
________________ अशुद्ध गाद्वादिन कहने सृमन्त बर्हितुख उकरण नीलोहित भाया सप्तर्चिः हक्कावे ग्व बृहस्पतेः शदिश्यं. गणरत्रं काल्गुनस्य वसन्नस्य तस्त्रावे तृताया द्रोह द्व प्राक्ती Jain Education International ६. शुद्धि पत्र शुद्ध स्याद्वादिन् कहते समन्त बर्हिमुख उपकरण नीललोहित भार्या सप्तार्चिः क्कीबे ख बृहस्पतेः दिश्यं गणरात्रं फाल्गुनस्य वसन्तस्य स्त्रोत्वे तृतीया द्रोह द्वे प्रोक्तं पेज २ ४ 9 m १४ २० १५ १६ १७ २४ २७ ३१ ३४ For Private & Personal Use Only 6 ३७ ३८ ३८ ४२ ४३ ४३ ४८ पंक्ति १८ १७ ९. १९ २. १० १ ४ ४७ ८ ६ www.jainelibrary.org

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