Book Title: Shivkosha Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: Karunashankar Veniram Pandya View full book textPage 5
________________ ग्रन्थों की रचना भी की है, जो अभि अप्रकाशित है एवं आगम ग्रन्थ का पूर्णतया प्रकाशन हो जाने के बाद इन ग्रन्थों के प्रकाशन के लिये योग्य विचारणा की जायेगी ऐसा उक समिति विचारणा में हैं ___ आगम ग्रन्थ के साथ साथ थोड़ा थोड़ा इन ग्रन्थों का भी प्रकाशन कार्य हो जाय तो आगम के साथ साथ बहुत सा कार्य को निवृत्ति सत्वर हो जाय इस उद्देश्य से आचार्य श्री रचित 'शिव कोष' का प्रकाशन करने को म. मा. कन्हैयालालजी म. ने मुझे उत्साहित किया. इस ग्रन्थ में आचार्य श्रीने संस्कृत शब्द एवं जैन पारिभाषिक शब्दो का संग्रह किया है एवं केवल संस्कृत जानने वालों को ही उपयोग में आवे ऐसा न करके साथ साथ हिन्दी भाषा के जानकार सर्व जनोपयोगी हो इस हेतु से हिन्दी अनुवाद दिया है जिससे कोष के पढने वाले भी सरलता से उपयोग कर सके. संस्कृत भाषा में कोष का अर्थ खजाना होता है जिस प्रकार राजा के चार अङ्ग में कोष (खजाना) को 'प्रधान गिना है कारण की कोष समृद्ध न होने पर अन्य सैन्यादि अङ्ग नहीं निभसकता उसी प्रकार जिस भाषा का कोष समृद्ध न हो वह भाषा असमृद्ध याने अल्पजीवि हो जाती है मतः आचार्य श्री का इस कोष ग्रन्थ को प्रकाशित करने का कार्य मैंने समुचित माना है आशा है कि आचार्य श्री के भक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 390