Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya

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Page 4
________________ जयतु वीरः प्रकाशकीय निवेदन जैन समाज में जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर पूज्य आचार्य श्री घासीलाल महाराज से कोन अपरिचित है ? विश्व में जैसा सूर्य का प्रकाश फैल रहा है वैसा ही आचार्य महाराजका यशरूपिसुप्रकाश प्रकाशित हो रहा है, इसमेंभी श्रीस्थानकवासी जैन समाज पर महाराज सा. का. अवर्णनीय उपकार है कारण की जैन समाजमें जो बत्तीस आगम ग्रन्थ है उनके ऊपर स्थानक वासी समाज की मान्यता याने प्ररूपणा के अनुसार शास्त्रग्रन्थ में अर्थ घटन नहीं था । इस क्षति को दूर करने के लिये पूज्य आचार्य श्री ने बत्तीस आगम की स्थानक वासी समाजकी प्ररूपणानुसार का अर्थघटन कर के स्वतन्त्र संस्कृत टीका एवं उसका हिन्द। गुजराती भाषानुवाद सहित सामान्य वर्ग भो सरलता से समजसके इस प्रकार बत्तीस आगम ग्रन्थों की रचना की बत्तीस आगम ग्रन्थ पैकी कई ग्रन्थ म.. सा. की विद्यमानता में ही प्रकाशित हो गये थे और जिन ग्रन्थ का प्रकाशन कार्य अवशिष्ट रहा वह कार्य पूर्ण करने के लिए श्री. अ. भा. श्वे. स्था० जैन शास्त्रोद्धार समिति एवं म.सा. के सुशिष्य संस्कृत प्राकृतज्ञ पण्डित मुनि श्री कन्हैयालालजी म. सा. पूर्ण धगश से अविरत श्रम पूर्वक कार्य कर रहे हैं। पूज्य आचार्य श्री ने आगम ग्रन्थ से अलावा जैन जगतमें उपयोगी बने इस प्रकार के न्याय व्याकरण, साहित्य एवं कोषके Jain Education International For Private & Personal Use Only & www.jainelibrary.org

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