Book Title: Shatrunjaya Mahatmya Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना. -88 सर्वे जैनबंधुऊने मालुम थाय जे, श्रा पंचम कालमां तीर्थंकर प्रजु था जरतक्षेत्रमा विचरता नहीं होवाथी, तथा केवली महाराज पण नहीं होवाथी, श्रा अपार संसारसमुथी तारवाने "श्री शत्रुजय महातीर्थ" समर्थ डे, एम तीर्थंकर महाराजो पण कही गएला . ते महातीर्थमाहात्म्य श्री रुपनदेव प्रजुना वखतमां पुंडरिकजी गणधर महाराजे सवा लाख श्लोकनी रचना करीने बनाव्युं हतुं; तथा तेमांथी संक्षिप्त करीने श्री वीरप्रजुना समयमां सुधर्माखामि गणधर महाराजे चोवीस हजार श्लोकनी रचना करीने बनाव्युं हतुं; तेमांथी पण सार उधरीने ववनीपुरना श्री शिलादित्य राजाना श्राग्रहथी श्राचार्य महाराज श्री धनेश्वरसूरिजीए दश हजार श्लोकनी रचना करीने संस्कृत भाषामां बनावेबुं बे; तेमांते आचार्य महाराजे महाकाव्यनी तुल्य अति उत्तमथने अलंकारोथी नरेली रचना करी. वली या ग्रंथ आपणा जैनीऊना अत्यंत प्राचीन ग्रंथ मांहेनो एक ग्रंथ बे; अने ते ग्रंथ बनावीने श्री धनेश्वरसूरिजी महाराजे आपणापर अवर्णनीय उपकार करेलो बे; केम के तेमां श्रा संसार समुज्थी तारनारा " श्री शत्रुजय महातीर्थमुं" माहात्म्य वर्णवेढुं , वली था ग्रंथ मूल संस्कृत नाषामां होवाथी, अमोए तेना था प्रथम खंडन गुजराती भाषांतर जामनगर निवासि पंडित श्रावक हीरालाल वि. हंसराज पासे करावी उपावी प्रसिक कर्यु जे; या ग्रंथमां श्री ऋषनदेव प्रजुश्रादिक केटलाक तीर्थंकरोना पण चरित्रो श्रावेलां बे; था ग्रंथना बे खंडो के तेमां श्रा प्रथम खंडमां श्री शत्रुजय श्रादिक शिखरोनुं माहात्म्य वर्णवेलुं , तथा बीजा खंडमां श्री गिरनारजी श्रादिक शिखरोनुं वर्णन करेलुं .ते बीजा खंडनुं गुजराती नाषांतर पण थोडाज दिवसोमा श्रमारा तरफथी उपाय बहार पडवानुं बे. या ग्रंथमां श्री शत्रुजय तीर्थाधिराजनो अपूर्व महिमा वर्णवेलो , तथा था ग्रंथ जैनीउने माटे एटलो तो जरुरनो डे के, तेनुं था जगोए ब्यान नहीं करतां, फक्त श्राद्यथी ते अंतसुधि ते वांची जवानी अमो अमारा जैनबंधुउने जलामण करीयें बीये. था तीर्थाधिराजनुं माहात्म्य वांचवाथी, तथा सांजलवाथी केटबुं पुण्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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