Book Title: Shatpadi Bhashantar Author(s): Mahendrasinhsuri Publisher: Ravji Devraj Shravak View full book textPage 5
________________ प्रस्तावना. · " आगमवादनेज बहुमत राखनुं " एवा उत्तम उद्देशथी श्री अंचळगच्छनी स्थापना थइ छे अने तेथीज ते "विधिपक्षगच्छ" तरीके ओलखाय छे. ए गच्छनी सामाचारी आगमानुसारिज छे एवं सिद्ध करवा सं. १२६३ मां श्री धर्मघोषसूरिए प्राकृत भा - वामां शतपदी नामे ग्रंथ रच्यो. पण ते बहु कठण होवाथी सं. १२९४ मां श्री महेंद्रसिंहरिए प्राकृत शतपदी ऊपरथी केटलाक धारा सुधारा साथै संस्कृतभाषायां आ वृहत् शतपदी नामे ग्रंथ रच्यो छे. एमां कुल ११७ विचारो छे. अंचळगच्छनी सामाचारी जाणवा माटे आ ग्रंथ संपूर्ण उपयोगी छे. पण आजकाल संस्कृतभाषानो प्रचार ओछो होवाथी तेनो बधा जणो लाभ लइ शकता नथी. तेथीज हमणा हमणा गच्छनी शुद्ध आचरणाओ दिवसे दिवसे लोपाइ जइने गच्छांतरनी आचरणाओ के जे अंचळगच्छना हिशाबे आगमथी विपरीत रहेली छे ते दाखल थती चाली छे. मांटे तेवी आचरणाओ अटकावीने गच्छनी प्रथमनी शुद्ध आचरणाओ चालु कराववा सारुं सर्व लोकोने सीधी समज पडे एवी ढबमां आ वृहत् शतपदीनुं भाषांतर करी छपाववामां आवे तो बहु लाभ थाय. एम धारीने अंचळगच्छश्रृंगार सुविहितक्रियाउद्धारक संविग्नपाक्षिक मुनिराज श्री गौतमसागरजी महाराजनी प्रबळ प्रेरणाथी आ भाषांतर रचवामां आव्युं छे.Page Navigation
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