Book Title: Shastrasara Samucchay Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj Publisher: Jain Delhi View full book textPage 3
________________ माह पश्चात् ही श्री १०८ जैकीर्ति जी महाराज ने कुन्थलगिरि पर आपको मुनि दीक्षा दे दी । आापको प्राचीन ग्रन्थों के अनुवाद तथा जैन साहित्य के प्रसार का बहुत हो ध्यान रहता है । आपने अनेक प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का अनुवाद किया है तथा अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया है। भरतेश वैभव-भावनासार अपराजितेश्वर शतक -दशलक्षरण धर्म-नर से नारायण इत्यादि २ | श्री भूवलय आज से लगभग १२-१३ सौ वर्ष पूर्व आचार्य श्री कुमुदेन्दु नामक एक महान् विद्वान् ऋषि का भारतवर्ष में आभिर्भाव हुआ-उन्होंने एक ऐसे ग्रन्थराज की रचना को जिसमें अंकों को प्रयोग में लाया गया । इस ग्रन्थ में एक भी अक्षर नहीं है । सारा भूवलय ग्रन्थ नौ अंकों तथा एक बिंदी से बना है। इस ग्रन्थ में उस काल की प्रचलित ७१८ भाषाओं · का साहित्य पाया जाता है । अनेक भाषाओं के ज्ञाता आचार्य श्री १०८ देशभूषण जी महाराज अपना अमूल्य समय लगाकर इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करने में प्रयत्नशील हैं । इस ग्रन्थ को विशालता का अनुभव इससे लगाया जा सकता है कि केवल हिन्दी भाषा में अनुवाद करने में ही कम से कम पांच सात वर्ष लगेंगे। इस ग्रन्थ में से अनेक अन्य ग्रन्थों के निकलने की भी सम्भावना है । इस कार्य के पूर्ण होने से समाज का अवश्य ही एक बड़ा उपकार होगा । बेहली चातुर्मास के समय श्री १०८ श्राचार्य देशभूषण जी महाराज द्वारा "शास्त्र सारसमुचय" ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद किया गया है श्राशा है धर्म प्रेमी महानुभाव इस ग्रन्थ को पढ़कर धर्म लाभ उठायेंगे । इस ग्रन्थ के हिन्दी अनुवाद करने में पं० श्रजित कुमार जी शास्त्री मुलतान वाले तथा पं० रामशंकर त्रिपाठीची वस्ती ने विशेष सहयोग दिया है। अतः उनके लिए धन्यवाद | २५-११-१६५७ वशेशर नाथ जैन पहाड़ी धीरज देहलीPage Navigation
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