Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

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Page 13
________________ करना कितना श्रम-साध्य कठिन कार्य है इसको भृक्त पोगी हो समझ सकते हैं। फिर भी ४२४ पृष्ठ प्रमाण इस टीका का अनुवाद महाराज ने स्वल्प समय में कर ही डाला। इसके साथ हो वे महान पद्मुत ग्रन्थ भूवलय के अनुवाद और सम्पादन में भी पर्याप्त योग देते रहे। इस तरह उनके कठिन श्रम को विद्वान हो आंक सकते हैं । इस ग्रन्थ के सम्पादन में मैंने भी कुछ योग दिया है । असाता वंश नेत्र पीड़ा, इन्फ्ल्यु जा ( श्लेष्म ) ज्वर तथा वायु पीड़ा-ग्रस्त होने के कारण मुझे लगभग डेढ़ मास तक शिवाम करना पड़ा, ग्रन्य का सम्पादन, प्रकाशन उस समय भी चलता रहा, शतः उस भाग को में नहीं देख सका । अन्य मूल प्रति उपलब्ध न होने से संशोधन का कार्य मेरे लिए भी कठिन रहा । बहुत सी गाथाएँ तथा संस्कृत श्लोक तिलोपपण्यत्ति, गोम्मटसार मादि ग्रन्थों से मिलान करके शुद्ध कर लिए गये; जिन उद्धृत पद्यों के विषय में मूल ग्रन्थ का पता न लग सका उनको ज्यों का त्यों रखदेना पड़ा अतः विद्वान इस कठिनाई को दृष्टि में रखकर पुटियों के लिए क्षमा करें। ग्रन्थ इससे भी अधिक सुन्दर सम्पादित होता किन्तु प्रकाशकों की नियमित स्वल्प समय में ही प्रकाशित कर देने की हरणा ने अधिक-समय-साध्य कार्य स्वल्प समय में करने के कारण वैसा न होने दिया । प्रस्तु । प्रजितकुमार शास्त्री सम्पादक जैन गजट, दिल्ली।

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