Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ पार्श्वनाथ और महावीर ये पांच तीर्थकर बाल ब्रह्मचारी हुए हैं। सभी तीर्थकुरों ने अपने समय में धर्म तथा सत्ज्ञान का महान प्रचार किया है। समस्त तोर्थट्टरों का तात्विक उपदेश एक ही समान रहा क्योंकि सत्य एक ही प्रकार का होता है, उसके अनेक भेद नहीं हुमा करते । अत: जैसी कुछ वस्तु-व्यवस्था भगवान ऋषभनाथ के ज्ञान द्वारा अवगत होकर उनकी दिव्य-ध्वनि से प्रगट हुई वैसा ही वस्तु-कथन भगवान महावीर द्वारा हुया। . भगवान महावीर के मुक्त हो जाने पर भगवान महावीर के चार शिष्य केवल ज्ञानी (सर्व) हुए । श्री इन्द्र-भूति गौतम गरमधर, सुधर्म गणधर तथा जम्बू स्वामी अनुबद्ध केवलो हुए और श्रीधर अननुबद्ध केवली हुए हैं। जो कि कुण्डल गिरि से मुक्त हुए । इनके पश्चात् भरत क्षेत्र में केवल-ज्ञानसूर्य अस्त हो गया । तब भगवान महावीर का तात्विक प्रचार उनकी शिष्यपरम्परा ने किया। चार केवलियों के बाद नन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवद्धन और भद्रबाहु ये पांच द्वादशांग वेत्ता श्रुत-केवली हुए। भद्रबाहु प्राचार्य के पश्चात् श्रुत-केवल-ज्ञान-सूर्य भी अस्त हो गया। इन पांचों का समय सी वर्ष है। तदनन्तर विशाश, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, वृतिषण, विजय, बुद्धिल, गङ्गदेव और सुधर्म, ये ग्यारह यति ग्यारह अंग दशपूर्व के वेत्ता हुए । इन सबका काल १८३ वर्ष है। तदनतः श्री नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्र वसेन और कंस ये पांच मुनिवर ग्यारह अंग के लाता हुए। ये सब २२० वर्षों में हुए । फिर सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु, और लोहार्य ये चार मुनिराज आचारांग के धारक हुए । ये ग्राचारांग के पूर्ण ज्ञाता थे, शेष १० अंग, १४ पूर्वो का इन्हें एकदेश ज्ञान था। इनके पीछे श्री धरसेन तथा गुणधर आचार्य हुए है। श्री धरसेनाचार्य ने अपना मायुकाल सन्निकट जानकर अन्य साधु संघ से श्री पुष्पदन्त भूतबली नामक दो मेधादी मुनियों को अपने पास बुलाया और उन्हें सिद्धान्त पढ़ाया । सिद्धान्तमें पारमत करके उन्हें अपने पास से विदा कर दिया । श्री धरसेनाचार्य गिरिनगर (मिरनार) के निकट चन्द्रक गुफा में रहते थे जोकि अब तक विद्यमान है। श्री पुष्पदन्त भूतबली आचार्य ने षड्लण्ड आगम को और श्री पुणधर प्राचार्य ने कसाय-पाट्टष्ट अन्म की रचना की। सम्भवतः षट्खण्ड भागम से पहले कसाय-पाहुड़ की रचना हुई है 1 श्री कुन्दकुन्द प्राचार्य अपने आपको

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 419