Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ वक्तव्य संसार में भ्रम, अज्ञान, असत्धारणा, प्राध्यात्मिक अन्धकार हैं, जैसे सूर्य अस्त हो जाने पर नेत्रों को बाहरी पदार्थ रात्रि के गहन अन्धकार में दिखाई नहीं देते, ठीक उसी तरह गह्न अज्ञान अन्धकार में ज्ञान का अधिपति आत्मा स्वयं अपने आपको नहीं देख पाता। किन्तु सोभाग्य है कि सदा रात्रि का प्रन्धकार नहीं बना रहता, कुछ समय पीछे सूर्य-उदय के साथ प्रकाश अवश्य हुआ करता है, इसी तरह अशान अन्धकार भी संसार में सदा व्याप्त नहीं रहता, उस आध्यात्मिक अन्धकार को दूर करनेवाला शान-सूर्य भी कभी दित होता ही है जिसके महान प्रकाश में अज्ञान धारणाएं, फैले हुए भ्रम और असत् श्रद्धा बहुत कुछ दूर हो जाती है, असो ज्ञान-प्रकाश में सांसारिक विविध दुःखों से पीड़ित जोव सन्मार्ग का अवलोकन करके गहन संसार वनको पार करके अजर अमर बन जाया करते हैं। जिस तरह दिन और रात्रि की परम्परा सदा से चली आ रही है, शान-प्रकाश और अज्ञान-अन्धकार फैलने की परम्परा भी सदा से खली आ रही है । ज्ञान-प्रकाशक तीर्थकर जब प्रगट होते हैं तब जगत में ज्ञान की महान ज्योति जगमगा उठती है और जब उनका निर्वारण हो जाता है सब धीरे-धीरे बह ज्योति बुझकर अज्ञान फैल जाता है । - इस युग की अपेक्षा भरतक्षेत्र में सबसे पहले सत्ज्ञान के प्रकाशक अनुपम दिवाकर आदि जिनेश्वर भगवान ऋषभनाथ सुषमादुःषमा काल के अन्तिम चरण में प्रगट हुए। उन्होंने अपने अनुपम ज्ञान बल से पहले समस्त किंकर्तव्य-विमूढ जनता को जीवन-निर्वाह की विधियां-असि, मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य, विद्या प्रादि कलाऐं सिखाई। अपनी ब्राह्मी पुत्री को अक्षर विद्या और लघुपुत्री सुन्दरी को अंक-विद्या सिखलाई, इस प्रकार लिखने पढ़ने का सूत्रपात किया ! अपने भरत, बाहुबली आदि उदीयमान महान पुत्रों को नाट्य, राजनीति, मल्ल युद्ध आदि कलानों में निपुण किया। भगवान ऋषभ नाथ ने अपने यौवन काल में स्वयं निष्कण्टक न्याय नीति से राज्य शासन किया तथा प्रायु के अन्तिम चरण में अपने राज-सिंहासन पर भरत को बिठा कर स्वयं मुनि-दीक्षा लेकर योग धारण किया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 419