Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

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Page 17
________________ (२) विषयकषायद्यवधान दावानलदह्यमान पंचप्रकार संसारकांतार परिभ्रमण भयभीत निखिल निकठ विनयजनं निरन्तराविनश्वर परम ल्हाद सुखसुदारसमनेबयसुत्तमि'मासुखामृतानुभूतियं निजनिरंजन परमात्मस्वरूप प्राप्तियिल्लदागदा सहजशुद्धात्मस्वरूपप्राप्तियुं अमे. दरत्नत्रययाराधने यिदिल्लदागदु । प्रा सहज शुद्धात्मस्वरूपरुचिपरिछित्ति निश्चलानुभूतिरूपे निश्चयरत्नत्रया नुष्ठान, तद्बहिरंग सहकारिकारणभूत भेवरत्ननयलधियिल्ल दागदु । तबहिरंग रत्नत्रयप्राप्तियु चेतनाचेतनादि स्वपर पदार्थ सम्यवद्धान ज्ञानवताद्यनुष्ठानगुणा गळिल्लददिदरे उंटागुवदिल्ला। तद्गुणविषयभूत सुशास्त्र विल्लादिदरिल्ला सुशास्त्र, वीतराग सर्वज्ञप्रणीतमप्पुदरिदं ग्रन्थकारं तदादिल्लिा मंगत्नार्थमभेदरत्नत्रय भावनाफाभूतानंतचतुष्टयात्मक अर्हत्परमेश्वरं गेद्रव्यभाव नमस्कारमाडिदपेनतेने अर्थ-दावानल ( जंगल में मीलों तक फैली हुई भयानक अग्नि) के समान विषय कषाय इस संसार वन में संसारी जीवों को जलाया करते हैं। उसी संताप से संतप्त संसारी जीव शांति सुस्त्र की खोज में इधर-उधर { चारों गतियों को चौरासी लाख योनियों में ) भटकते फिरते हैं, उस सांसारिक दुःख से भयभीत निकट भव्य जीव, अविनाशी परमाल्हादस्वरूप सुख पाने की उत्कंठा रखता है। परन्तु वह अनन्त अविनश्वर सुख शुद्ध निरंजनात्मस्वरूप (परमात्मा का स्वरूप) प्रगट होने पर मिलता है। उस सरल शुद्धात्मस्वरूप की प्राप्ति अभेद रत्नत्रय के बिना नहीं हो सकती, उसे चाहे अभेद रत्नत्रय कहो या निश्चय रत्नत्रय कहो वह शुद्धात्मरुचि, परिचय और निश्चल अनुभूति रूप होती है। वह निश्चय रत्नत्रय, उस बहिरंग कारण भूत भेद रत्नत्रय की प्राप्ति के बिना नहीं हो सकता और वह बहिरंग रत्नत्रय चेतना चेतनादिक स्वपरपदार्थ के सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान और व्रतानुष्ठान गुण बिना नहीं हो सकता। जिसका अनिवार्य निमित्त कारण सम्यक् शास्त्र का अध्ययन है वह सुशास्त्र श्री वीतराग सर्वज्ञप्रणीत होने के कारण ग्रन्थकार ने ग्रन्थ के आदि में मंगल निमित्त, मेद रत्नत्रय भावना फलभूत अनन्त चतुष्टयात्मक अरहंत परमेष्ठी को द्रव्य भाव पूर्वक नमस्कार किया है। वह इस प्रकार है कि...

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