Book Title: Shastra Sandeshmala Part 24
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 398
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिवाहो दुविणयम्मि, पट्ठिसंगं च कउअम्मि । रुद्दम्मि पंडरंगो, पक्कग्गाहो य मयरम्मि ॥४८५ ॥ परिलिय-पडिछन्दा लीण-मुहा, पच्छेणयं च पाहेज्जं । संमुहागमणे पच्चद्धारो पच्चोवणी चेय ॥४८६॥ पच्चुहियं पण्हविए, पडच्चरो सालसरिसम्मि। परिहाय-परिच्छूढा झीण-उक्खित्ता, पडिक्खरो कूरे ॥ ४८७ ॥ खेत्तसए परिवासो, पयट्टिओ तह पवट्टियए। पज्जत्तम्मि पहोइयं, अह खेत्ते पल्लवाय-पोरयया ॥ ४८८॥ पंचाहियपण्णासाए पंचावण्ण-पणवण्णा । पप्फोडियं च पक्खोडियम्मि, सुरयम्मि परभाओ ॥४८९॥ पडियलि-पविरइया तुरिए, पुण्णम्मि पडिहत्थ-पोणियया। पडिखधं पडिखंधी जलवहणे, मत्थयम्मि पवरंगं ॥४९० ॥ णगरम्मि पइट्ठाणं, रुक्खे पसुहत्त-परसुहत्ता य । पाणियणिग्गमणम्मि य परिहालो परिहलाविओ चेय ॥ ४९१ ।। पणअत्तियं पयडिए, इत्थीपणए पणामणिया । परिवारिओ य घडिए, पुलोअणे पसवडक्कं च ॥ ४९२ ॥ पव्वइसेल्लं वालमयकंदुए, तरुणियाइ पडुजुवई। चिरसुयमहिसी परिहारिणी य, पडिअज्झओ उवज्झाए ॥ ४९३ ॥ पडिएल्लिओ कयत्थे, भग्गे पडिरंजियं चेय। पज्जुणसरं उच्छुसरिसतिणम्मि, पडिअंतओ य कम्मयरे ॥ ४९४ ॥ पडिसारियं सुमरिए, परिल्लवासो य अमुणिअगइम्मेि । वम्मीअयम्मि पडिलग्गलं, वसंतम्मि पउमलओ ॥४९५ ॥ पवहाइयं पयट्टे, पडिपिडियं अवि पवुड्डम्मि। पच्चवलोक्को पाडच्चरो य आसत्तचित्तम्मि ॥ ४९६ ॥ 3८१ For Private And Personal Use Only

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