Book Title: Shastra Sandeshmala Part 24
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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संखम्मि सोलहावत्तओ य, सोवण्णमक्खिया सरहा। केस-विसम-थंबेसुं सढो, सिला-घुण्णिएसु सअयं च ॥ ७५२ ।। सरहो वेडिस-सीहेसु, सक्खि -गामीणएसु सणियो य। ण्हाविय-रजक-पुरक्किय-दित्तेसुं सज्जिओ चेअ ॥७५३॥ हंस-ओघसरेसु सरेवओ अ, संवाअआ णउल-सेणा। सण्णिहिय-माविएसुं अणुणीए चेअ सण्णुमियं ॥७५४ ।। तोसिय-सारविअ-अंजलिकरणेसु समुच्छियं चेअ।। पडिवेसि-पओसेसुं वज्झे य समोसिओ होइ ॥७५५ ॥ चिंतिय-सण्णिज्झे सण्णविअं, सम-णिब्भरेसु समसीसं । अजस-रएसु समुप्पिंजलं, अमय-इंदुसु समुद्दणवणीयं ॥ ७५६ ॥ मरहट्ठदेसपट्टणभेए दूरे य सायं च । साहो य वालुआसुं उलूअए दहिसरे चेअ
॥७५७॥ वत्थ-ब्भू-भुअ-साहा-पिकि-सरिस-सहीसु साहुली चेय। संबूअयम्मि सालुअं अह सुक्कजवाइअसिरम्मि ॥ ७५८ ॥ सामग्गियं च चलिए अवलंबिय-पालिएसुं च । सित्था लाला-जीआसु, हिम-ओसाएसु सिण्हा वि ॥७५९ ॥ सिंदुरयं णायव्वं रज्जूए तह य रज्जम्मि। बालम्मि दहिसरम्मि य मोरे य सिहंडइल्लो वि ॥७६०॥ हिमकालदुद्दिणे तह झाडविसेसम्मि सीअल्ली । सीअणयं पारि-मसाणा, सिह-णोमालिआसु सीहलिया ॥ ७६१ ॥ सुग्गं च अप्पकुसले णिव्विग्घ-विसज्जिएसुं च । रुप्प-रजगेसु सुज्झयं, अह वेसहर-चडएसु सुहराओ ॥७६२ ।।
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