Book Title: Shashti Shatak Prakaranam
Author(s): Manvijay
Publisher: Satyavijay Jain Granthmala

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ निवेदन ॥ आ पडिशतक मूल ग्रन्थ भाण्डागारिक श्रीनेमिचन्द्र आवके १६० गाथामां लखेलो छे, तेनी संस्कृत टीका महो पाध्यायश्री गुणरत्नगणिजीप १५०१ नी सालमां रची छे. आ टीकामां टीकाकारे देवगुरुधर्म, सम्यकत्व, विगेरे विषयो युक्तिपूर्वक दाखला दलीलोथी सारीरीते प्रतिपादन करेला छे, अने पत्री सरल संस्कृत भाषामा लखेला छे के साधारण बुद्धिबाळाओ पण सहेलाइथी बांची शके तेम छे. आ ग्रन्थमां पाटान्तरो चोखंडा कांउसमां मुकेला छे तेमज टीकानी अंतरगत केटलीक प्रास्ताविक गाथाओ भने लोकोनी टीकाओ चोखंडा कांउसमां मुकी छे, तेमज टीकानी अन्तर्गत गायाओनी छाया पण पाछळ मुकी के. क्वचित् कांई त्रुटि जणाय ते ठेकाणे सहेज उमेरो कर्यो छे ते गोळ कांउसमां आपेल छे. मूळ ग्रन्थनुं भाषारुपे अनुवाद जे पथमां छे ते पण पाछळ छापवामां आव्यो छे. आ ग्रन्थ सुधारवा माटे प्रतो विगेरे मेलवी आपवा तथा सुधारो बधारो करवा माटे रा. रा. वकील केश बलाल प्रेमचन्दभाइप उपयोगी सारी मदद करी छे ते बाबत तेमने धन्यवाद घटे छे. ग्रन्थ शुद्धिमां पुरतुं ध्यान आपवामां आयुं छे छतां केटलेक स्थले प्रेसना दोषधी मूठो रही छे ते माटे शुद्धिपत्रक मुकेल छे. छतां मूलो दृष्टिगोचर थाय ते विशनो सुधारी षांवशे, तेषी अमारी प्रार्थना छे. भुलो जणाव्याथी बीजी आवृत्ति वखते योग्य सुधारो करीशुं. ली. प्रकाशकः सत्यविजय प्रन्थमालाना कार्यबाहक शा. बालाभाइ मुळचंद्र. अमदावाद. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir

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