Book Title: Shantinath Mahakavyam Part 01 Author(s): Vijaydarshansuri Publisher: Nemidarshan Gyanshala View full book textPage 7
________________ ... 'सम्मतितक' नामना प्राचीन ग्रंथमां अल्प शब्दोमां समायेला अतिगूढ भावो तेओश्रीए टोकामां सरलताथी स्फुट करो बताव्या छे. सम्मतितकनी प्राचीन भाषाशैली अभ्यासीने कठिन पडे तेम होवाथी वर्तमान न्यायशैलीमां पूज्य गुरुमहाराजश्रीए ते ग्रंथ पर सुंदर तेमज सर्वमूल श्लोकगत दरेक पदोना रहस्यभूत अर्थने प्रदर्शन करनारी विस्तृत टीका रची विद्यापिपासुओने सरलता करो आपी छे. आवी रीते सुंदर साहित्य जैनसमाजने चरणे धरीने पूज्य गुरुभगवंते जैनसाहित्य तेमज जैन समाजनी अपूर्व सेवा बजावी छे. एटलुं ज नहीं पण अनेक पाठशालाओ, उपायो. भव्य जिनमंदिरो, जीर्णोद्धार विगेरे अनेक स्थलोए अनेक शुभ कार्यो तेओश्रीए सदुपदेश द्वारा कराव्या छे. श्री सिद्धगिरिजी आदि अनेक तीर्थसंघ कढावी भाग्यवंत श्रावकोने संबपति बिरुदवडे अलंकृः कर्या छे. सौराष्ट्रथी मांडीने मारवाड़, मेवाड, मालवा सुधी विहार करीने 'जिनवाणी' नो सुंदर प्रचार करीने तेओश्रीए शासननी अनुपम सेवा बजावी छे. पवित्र तालध्वज तीर्थमां बब्बे वार तेओनीना वरद हस्ते दीर्घकाल स्मरणीय भव्य प्रतिष्ठा थई छे. वि०सं० 1980 मां थयेल अति मनोहर अभूतपूर्व प्रथम प्रतिष्ठा महोत्सवने 30 वर्ष वीती गया पछी ताजेतरमां वि. सं. 2010 मां वैशाख शुदि पंचमीना शुभदिवसे बीजी प्रतिष्ठा थई. स्मृतिपट उपर सदाने माटे याद रहे तेवो भव्य प्रतिष्ठामहोत्सव याद करतां आजे पण जैन समाजनां हैयां पुलकित बने छे. वि. सं. 1978 जेठ वद 5 जेसर गाममा वर्तमान शासननायक श्री महावीर प्रभुनो प्रतिष्ठा महोत्सव तथा मारवाडना सुप्रसिद्ध शहर 'शिरोही' ना भव्य-महा-विशाल-प्राचीन चौद जिनमंदिरोनो वि० सं० 1985 मां अढार अभिषेकादि अष्टाह्निका महामहोत्सव तेमज गोघा गाममां वि० सं० 1987 मां दंडप्रतिष्ठा महोत्सव, जसपरा गाममां वि० सं० 1995 मां अति मनोहर प्रतिष्ठा-महोत्सव तेमज कपडवणज गामे सं० 2006 मा अतिसुंदर प्रभु प्रतिष्ठा-महोत्सव तथा वि० सं० 2011 जेठ शुदि 5 तणसा गाममां प्रभुमंदिर दंडध्वज प्रतिष्ठा-महोत्सव इत्यादि अनेक गाममा प्रतिष्ठा महोत्सवो पूज्यपाद श्री गुरुभगवंतना वरदहस्ते थया. अंजनशलाका आदि शुभ कार्यों पण महुवा तथा सुरेन्द्र नगरमां तेओश्रीनी निश्रामां थया हता. प. पू. श्री गुरुदेवना वरद हस्ते अनेक स्थलोए शांतिस्नात्र अहंदपूजन-उपधानउजमणा विगेरे शासनप्रभावनाकारक अनेक शुभकार्यो थयेल छे. विद्वत्ता पूज्य गुरुदेवने वरी होवा छतां तेनुं तेओश्रीने लेशमात्र अभिमान नथी. एमनी सरलता अने कोमलता सौ कोईने आकर्षी ले छे. भवभीरुता तेओश्रीना स्वभावमा ज रहेली छे. निरभिमानता अने निराडंबरिता तेओश्रीना सद्गुणो तथा अपूर्व विद्वत्ताथी आकर्षाईने पूज्य गुरुदेव शासनसम्राट् शासनप्रभावक पृथ्वीमंडलमुकुटायमान पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय बालब्रह्मचारी आचार्यमहाराजाधिराज श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजश्रीए तेओश्रीने अनेक पदवीओथी अलंकृत कर्या. वि० सं० 1969 ना अशाड शुदि पंचमीना रोज 'कपडवंज' मां विधिविधानपूर्वक 'गणपदवी' अने ते ज वर्षमां अशाड शुद नवमीना दिवसे सविधि पनयास पदवी समर्पण करी, वि० सं० 1972 ना मागशर वद 3 ना दिवसे मारवाडना 'सादडी' शहरमां विधिपूर्वक 'उपाध्याय' पदवी अर्पण करी. तदुपरांत जिनागमो, दर्शन शास्रो, अने न्याय शास्त्रोना अति-गहन परम रहस्यभूत तत्त्वना सुंदरतम अपूर्व बोधथी आकर्षाईने "न्यायवाचस्पति शास्त्रविशारद" नुं मानवंतुं विरुद-अनेक गामना संघ समक्ष शासनसम्राट् सकलतारक-साधुPage Navigation
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