Book Title: Shantinath Mahakavyam Part 01
Author(s): Vijaydarshansuri
Publisher: Nemidarshan Gyanshala

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Page 8
________________ मंडल नायक-शासनप्रभावक पू० पा० विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजाए तेओश्रीने विक्रम संवत् 1972 मां उपाध्याय पद प्रदाननी साथोसाथ अर्पण कयु. तथा वि० सं० 179 ना वैशाख वद 2 बीजना शुभ दिवसे 'खंभात' शहरमां विद्यापीठादि पंचप्रस्थानमय सूरिमंत्रनी अपूर्व आराधनापूर्वक विधि सहित सूरिमंत्रयुक्त 'आचार्यपदवी' तेओश्रीने अर्पण करी, अने तेओश्रीना पट्टधर तरीके पू. गुरुदेवनी स्थापना करी अने पूज्य गुरुदेव पण ते पदने आज पर्यंत शास्त्रोक्त मर्यादापूर्वक शोभावी रह्या छे. __ पूज्यपाद गुरुदेवनो जन्म वि. सं० 1943 ना पोष शुद पुनमना रोज थयो हतो. बाल्यअवस्थाथी ज तेओनीनुं अंतःकरण धर्मभावनाथी वासित हतुं. पूज्य मातापिताश्रीए तेओश्रीमां सुंदर संस्कारो रेड्या हता. मुनिसत्तम महनीय मान्य पूज्य श्रीखान्तिविजयजी दादा नी छट्ठने पारणे छट्ठ आदि उग्र तपश्चर्या तथा तेमना तीव्र वैराग्य अने उत्तम चारित्र नी तेओश्रीना जीवन पर सुंदर छाप पडेली. तमेज तेवा वचनसिद्ध महापुरुषना उपदेशथी अपरिणीत अवस्थामां पूज्य गुरुदेवने भव-निर्वेद प्रगट्यो, अने ते भव-निर्वेद-वैराग्य भावनाने शासनसम्राट तीर्थोद्धारक परमोपकारक पूज्यपाद प्रातस्मरणीय आचार्यमहाराज श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजश्रीए सचोट उपदेश आपी विकसावी अने विक्रम संवत् 1959 ना अशाड शुद 10 ना रोज भावनगरमां भागवती दीक्षा आपीने पूर्ण करी. मात्र सोल वर्षनी वये परम पवित्र भागवती दीक्षा अंगीकार करीने तेओश्रीए वीशा श्रीमालिवंशदीपिका अर्हद्धर्मउपासिका पूज्य माता धनीबाई तेमज वीशाश्रीमालिवंशशिरोमणि श्राद्धवर्य पूज्य पिताश्री कमलशीभाईनुं कुल अजवाल्युं, अने शासनप्रभावक नररत्नोथी विभूषित 'मधुमति' ( महुवा ) नगरीने भाग्यशाली बनावी. संसारी अवस्थाना श्रीसुंदरजीभाई मटीने पू० महाराजश्री दर्शनविजयजी बन्या. आ शुभ प्रसंगथी पूज्यश्री धनीमाता तथा कसलचंद, हेमचंद तथा जीवराज त्रणे वडील भाईओना हृदयमां आनंदोर्मि उछली. दीक्षानी अनुमोदनाथी तेओ अपूर्व पुण्यभागी बन्या. आ शुभ अवसरे कमनसीबे पूज्य पिताश्री कमलशीभाई आ सुंदर प्रसंग निहालवा माटे हैयात न हता. दीक्षित अवस्थामा प्रतिदिन सतत बांचन, मनन अने निदिध्यासन द्वारा तेओश्रीए थोड़ा बर्षोमां सारी प्रगति साधी अने दरेक आगमशास्त्रोनुं तेमज जैन अने जै तर न्यायशास्त्रोनुं सारी रीते परिशीलन तेमज अवगाहन कयु अने तेना परिणामे तेओश्रीए विद्वद्भोग्य अने उच्च कोटीना न्याय आदिना उत्तम ग्रंथो रच्या छे. तेओश्रीनी विहारभूमि अतिविशाल छे. सौराष्ट्र, गुजरात, मारवाड अने मेवाड उपरांत विविध स्थलोए तेओनी विचर्या छे. प्रत्येक स्थलोए तेओश्रीए सरल अने आकर्षक भाषामां जिनवाणीनो प्रचार कर्यो छे. तेओश्रीना विद्वत्ताभर्या अने सरल प्रवचनोए अनेक भव्य आत्माओने मुग्ध कर्या छे. केई भावुक हैयाओए भागवती दीक्षा अंगीकार करीने तेओश्रीना चरणकमलोमां जीवन समर्पित कयु छे. जे पैकी अमुक शिष्यो तो बालब्रह्मचारी प्रातःस्मर्णीय न्यायवाचस्पति शास्त्रविशारद-पज्यपादश्री गुरुमहाराजश्रोनी निश्रामां स्वपरदर्शनमां विद्वत्ता प्राप्त करी शासननी सुंदर सेवा करी रहथा छे. तेओश्रीना शिष्यो सरल अने शांत स्वभावी तपस्वी मुनि श्रीकुसुमविजयजी तथा 'स्तोत्रमाला' अने 'हैमधातुमाला' ना रचयिता न्यायव्याकरण विद्वद्वर्य बाल अवस्थामा दीक्षित-मुनि श्रीगुणविजयजी, तथा तपस्वी मुनिश्री महोदयविजयजी तथा मुनिश्री कल्याण विजयजी, अनुपम संयमनी आराधना करीने स्वर्गे संचर्या छे. तेओश्रीना प्रशिष्य तपस्वी मुनिश्री तिलक

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