Book Title: Shantinath Mahakavyam Part 01
Author(s): Vijaydarshansuri
Publisher: Nemidarshan Gyanshala

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Page 11
________________ [2] काव्याम्बरे निबिडदोषतमो हरन्तो , यज्ज्ञानभानुकिरणाः परितो लसन्ति / भद्रं तनोतु शुचिकाव्यकलाविलासे, सोऽयं सदैव सदयो मुनिभद्रसरिः // 4 // मया तत्काव्येऽस्मिन् वरधिषणभाव्ये विवरणं, चिकीर्षाया नीतं विषयमविसंवादिमनसा / तथाप्येतत् कृत्यं कठिनतरमाभाति नहि मे, यतश्चित्ते चिन्तामणिसमधिकाः सन्ति गुरवः // 5 // भवाब्धौ नीतोऽहं वरचरणनावं सपदि यैः, कृतोऽत्यज्ञश्शास्त्रोदधितरणनैपुण्यलसितः / प्रतिष्ठां सन्निष्ठां क्रमश इह पैरेव गमितः, क्षितौ ते भ्राजन्ते स्म मम गुरवो नेमिकृतिनः // 6 // तत्कृपालेशमासाद्य, श्रीमदर्शनमुरिणा / शान्तिनाथमहाकाव्ये, तन्यतेऽसौ प्रबोधिनी // 7 // इमामधीत्य विद्वांस-स्तुष्यन्ति सारदर्शनात् / अविद्वांसोऽपि तुष्यन्ति, स्पष्टार्थबोधबोधनात् // 8 // श्री शान्तिनाथमहाकाव्यकृत्कृतं मङ्गलाचरणम् प्रभाकरो यः परमः कलानिधि-र्य एव यस्मादपरो न पावकः / विभाति यद्भाभिरिदै चराचरं, जिनाय तस्मै परमात्मने नमः // 1 // अन्वयः-य: परमः प्रभाकरः, य एव (परमः ) कानिधिः, यस्मादपर: पावकः न, यद्भाभिः इदं चराचरं विभाति, तस्मै परमात्मने जिनाय नमः / व्याख्या-"सर्गबन्धो महाकाव्य"-मिति लक्षणलक्षितदिशा महाकाव्यं चिकीर्षन् कविः "श्रेयांसि बहुविघ्नानि" इति लोकोक्तेर्विघ्नैर्बाधा मा भूदिति विघ्नव्यूहविध्वंसपूर्वकसमाप्तिकामनया शिष्टाचारानुमितावश्यकर्त्तव्यताकम् , “आशीर्नमस्क्रिया वस्तुनिर्देशो वाऽथ मङ्गल" मिति त्रिविधमङ्गलमध्ये स्वेष्टदेवता

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