Book Title: Seva Paropkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 7
________________ सेवा-परोपकार सेवा-परोपकार परोपकार, यह तो बहुत ऊँची स्थिति है। यह परोपकारी लाइफ, सारे मनुष्य जीवन का ध्येय ही यह है! जीवन में, महत् कार्य ही ये दो और दूसरे इस हिन्दुस्तान के मनुष्य का अवतार किस लिए है? अपना यह बंधन, कायमी बंधन टूटे इस हेतु के लिए है, 'एब्सोल्यूट' होने के लिए है और यदि यह 'एब्सोल्यूट' होने का ज्ञान प्राप्त नहीं हो, तो तू दूसरों के लिए जीना। ये दो ही कार्य करने के लिए हिन्दस्तान में जन्म है। ये दो कार्य लोग करते होंगे? लोगों ने तो मिलावट करके मनुष्य में से जानवर में जाने की कला खोज निकाली है। सरलता के उपाय प्रश्नकर्ता : जीवन सात्विक और सरल बनाने के क्या उपाय हैं? है, लोगों से कहता भी है, पर वह जो अच्छे के लिए कहता है, उसे लोग 'मेरे खद के भले के लिए कहता है', ऐसा समझने के लिए कोई तैयार नहीं, उसका क्या? दादाश्री : ऐसा है, परोपकार करनेवाला सामनेवाले की समझ देखता नहीं है और यदि परोपकार करनेवाला सामनेवाले की समझ देखे तो वह वकालत कहलाती है। इसलिए सामनेवाले की समझ देखनी ही नहीं चाहिए। ये पेड़ होते हैं न सभी, आम हैं, नीम हैं वे सभी, उन पर फल आते हैं, तब आम का पेड़ अपने कितने आम खाता होगा? प्रश्नकर्ता : एक भी नहीं। दादाश्री : किस के लिए हैं वे? प्रश्नकर्ता : दूसरों के लिए। दादाश्री : हाँ, तब वह देखते है कि यह लुच्चा है कि भला है, ऐसा देखते है? जो ले जाए उसके, मेरे नहीं। परोपकारी जीवन वह जीता है। ऐसा जीवन जीने से उन जीवों की धीरे-धीरे ऊर्ध्वगति होती है। प्रश्नकर्ता : पर कई बार जिसके ऊपर उपकार होता है, वह व्यक्ति उपकार करनेवाले पर दोषारोपण करता है। दादाश्री : हाँ, देखने का वही है न! वह जो उपकार करता है न, उसके ऊपर भी अपकार करता है। प्रश्नकर्ता : नासमझी के कारण ! दादाश्री : यह समझ वह कहाँ से लाए? समझ हो तो काम हो जाए न! समझ ऐसी लाए कहाँ से? दादाश्री : तेरे पास जितना हो उतना ओब्लाइजिंग नेचर रखकर लोगों को देता रह। ऐसे ही जीवन सात्विक होता जाएगा। ओब्लाइजिंग नेचर किया है तूने? तुझे ओब्लाइजिंग नेचर अच्छा लगता है? प्रश्नकर्ता : कुछ अंश तक किया है ! दादाश्री : उसे अधिक अंश में करें, तो अधिक फायदा होगा। ओब्लाइज ही करते रहना। किसी के लिए फेरा लगाकर, चक्कर लगाकर, पैसे देकर, किसी दुखी को दो कपड़े सिलवा दें, ऐसे ओब्लाइज करना। भगवान कहते हैं कि मन-वचन-काया और आत्मा (प्रतिष्ठित आत्मा) का उपयोग दूसरों के लिए करना। फिर तुझे कोई भी दुःख आए तो मुझे बताना। धर्म की शुरूआत ही 'ओब्लाइजिंग नेचर' से होती है। आप अपने

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