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सेवा-परोपकार
सेवा-परोपकार
एक व्यक्ति मुझे एक बड़े आश्रम में मिले। मैंने पूछा, 'आप यहाँ कहाँ से?' तब उसने कहा कि मैं इस आश्रम में पिछले दस साल से रहता हैं।' तब मैंने उनसे कहा, 'आपके माँ-बाप गाँव में बहुत गरीबी में अंतिम अवस्था में दुखी हो रहे हैं।' इस पर उसने कहा कि, 'उसमें मैं क्या करूँ? मैं उनका करने जाऊँ, तो मेरा धर्म करने का रह जाए।' इसे धर्म कैसे कहें? धर्म तो उसका नाम कि माँ-बाप से बात करें, भाई से बात करें, सभी से बात करें। व्यवहार आदर्श होना चाहिए। जो व्यवहार खुद के धर्म का तिरस्कार करे, माँ-बाप के सबंध का तिरस्कार करे, उसे धर्म कैसे कहा जाए?
आपके माँ-बाप हैं या नहीं? प्रश्नकर्ता : माँ है।
दादाश्री : अब सेवा करना, अच्छी तरह। बार-बार लाभ नहीं मिलेगा और कोई मनुष्य कहे कि, 'मैं दुखी हूँ' तो मैं कहूँगा कि तेरे माता-पिता की सेवा कर, अच्छी तरह से। तो संसार के दुःख तुझ पर नहीं पड़ेंगे। भले ही पैसेवाला नहीं बनेगा, पर दुःख तो नहीं पड़ेगा। फिर धर्म होना चाहिए। इसे धर्म ही कैसे कहें?
__ मैंने भी माताजी की सेवा की थी। बीस साल की उम्र थी अर्थात् जवानी की उमर थी। इसलिए माँ की सेवा हो पाई। पिताजी को कंधा देकर ले गया था, उतनी सेवा हुई थी। फिर हिसाब मिल गया कि ऐसे तो कितने पिताजी हो गए, अब क्या करेंगे? तब जवाब आया, 'जो हैं, उनकी सेवा कर।' फिर जो चले गए, वे गोन (गए)। पर अभी तो जो हैं, उनकी सेवा कर, न हों, उनकी चिंता मत करना। सभी बहुत हो गए। भूले वहाँ से फिर से गिनो। माँ-बाप की सेवा, वह प्रत्यक्ष रोकड़ा है। भगवान दिखते नहीं, ये तो दिखते हैं। भगवान कहाँ दिखते हैं? और माँ-बाप तो दिखते हैं।
खरी ज़रूरत, बूढ़ों को सेवा की अभी तो यदि कोई ज्यादा से ज्यादा दुखी होंगे तो एक तो साठपैसठ वर्ष की उमर के बूढ़े लोग बहत दखी हैं आजकल। पर वे किसे कहें? बच्चे सुनते नहीं। पैबंद बहुत हो गए है, पुराना जमाना और नया जमाना। बूढ़ा पुराना जमाना छोड़ता नहीं है। मार खाए, फिर भी नहीं छोड़ता।
प्रश्नकर्ता : पैंसठ साल में हर एक की यही हालत रहती है न!
दादाश्री : हाँ, वैसी की वैसी हालत। यही का यही हाल। इसलिए वास्तव में करने जैसा क्या है इस ज़माने में? कि किसी जगह ऐसे बुजुर्गों के लिए यदि रहने का स्थान बनाया हो तो बहुत अच्छा। इसलिए हमने सोचा था। मैंने कहा, ऐसा कुछ किया हो न, तो पहले यह ज्ञान दे दें। फिर उनके खाने-पीने की व्यवस्था तो यहाँ हम पब्लिक को और अन्य सामाजिक संस्था को सौंप दें तो चले। पर यह ज्ञान दिया हो तो दर्शन करते रहें तो भी काम चलता रहे। और यह ज्ञान दिया हो तो शांति रहे बेचारों को, नहीं तो किस आधार पर शांति रहे? आपको कैसा लगता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है। दादाश्री : पसंद आए ऐसी बात है कि नहीं?
वृद्धावस्था और साठ-पैसठ की उम्र का व्यक्ति हो और घर में रहता हो और कोई उसे कुछ माने ही नहीं, तो फिर क्या होगा? मुँह से बोल नहीं पाएँ और मन में उलटे कर्म बाँधे। इसलिए इन लोगों ने जो वृद्धाश्रमों की व्यवस्था की है, वह व्यवस्था कुछ गलत नहीं है। हेल्पिंग है। पर उसके लिए वृद्धाश्रम नहीं, पर कोई सम्मानसूचक शब्द, ऐसा शब्द होना चाहिए कि सम्माननीय लगे।