Book Title: Seva Paropkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 5
________________ निवेदन आत्मविज्ञानी श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल, जिन्हें लोग 'दादा भगवान' के नाम से भी जानते हैं, उनके श्रीमुख से अध्यात्म तथा व्यवहार ज्ञान संबंधी जो वाणी निकली, उसको रिकॉर्ड किया गया था। उसी वाणी का संकलन तथा संपादन होकर, वह पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुई। प्रस्तुत पुस्तक मूल गुजराती पुस्तक का अनुवाद है। ज्ञानी पुरुष संपूज्य दादा भगवान के श्रीमुख से अध्यात्म तथा व्यवहारज्ञान संबंधी विभिन्न विषयों पर निकली सरस्वती का अद्भुत संकलन इस पुस्तक में हुआ है, जो पाठकों के लिए वरदानरूप साबित होगा । प्रस्तुत अनुवाद में यह विशेष ध्यान रखा गया है कि वाचक को दादाजी की ही वाणी सुनी जा रही है, ऐसा अनुभव हो । उनकी हिन्दी के बारे में उनके ही शब्द में कहें तो 'हमारी हिन्दी याने गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी का मिक्सचर है, लेकिन जब 'टी' (चाय) बनेगी, तब अच्छी बनेगी।' ज्ञानी की वाणी को हिन्दी भाषा में यथार्थ रूप से अनुवादित करने का प्रयत्न किया गया है किन्तु दादाश्री के आत्मज्ञान का सही आशय, ज्यों का त्यों तो, आपको गुजराती भाषा में ही अवगत होगा। मूल गुजराती शब्द जिनका हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं है, वे इटालिक्स में लिखे गए हैं। ज्ञान की गहराई में जाना हो, ज्ञान का मर्म समझना हो, तो वह गुजराती भाषा सीखकर, मूल गुजराती ग्रंथ पढ़कर ही संभव है। फिर भी इस विषय संबंधी आपका कोई भी प्रश्न हो तो आप प्रत्यक्ष सत्संग में आकर समाधान प्राप्त कर सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में कई जगहों पर कोष्ठक में दर्शाए गए शब्द या वाक्य परम पूज्य दादाश्री द्वारा बोले गए वाक्यों को अधिक स्पष्टतापूर्वक समझाने के लिए लिखे गए हैं। दादाश्री के श्रीमुख से निकले कुछ गुजराती और अंग्रेजी शब्द ज्यों के त्यों रखे गए हैं। अनुवाद संबंधी कमियों के लिए आपसे क्षमाप्रार्थी हैं। संपादकीय यह मन-वचन-काया दूसरों के सुख के लिए खर्च करें तो खुद को संसार में कभी भी सुख की कमी नहीं पड़ती। और अपने खुद केसेल्फ का रियलाइज़ेशन करें, उसे सनातन सुख की प्राप्ति होती है। मनुष्य जीवन का ध्येय इतना ही है। इस ध्येय के रास्ते पर यदि चलने लगें तो मनुष्यपन में ही जीवनमुक्त दशा की प्राप्ति होगी । उससे आगे फिर इस जीवन में कोई भी प्राप्ति बाकी नहीं रहती । आम का पेड़ खुद के कितने आम खा जाता होगा? उसके फल, लकड़ी, पत्ते आदि सब दूसरों के लिए ही काम आते हैं न? उसके फल स्वरूप वह ऊर्ध्वगति प्राप्त करता रहता है। धर्म की शुरूआत ही ओब्लाइजिंग नेचर (परोपकारी स्वभाव) से होती है। दूसरों को कुछ भी देतें हैं, तब से ही खुद को आनंद शुरू होता है। परम पूज्य दादाश्री एक ही वाक्य में कहते हैं कि माँ-बाप की जो बच्चे सेवा करते हैं, उन्हें कभी पैसों की कमी नहीं आती, उनकी ज़रूरतें सब पूरी होती हैं, और आत्म साक्षात्कारी गुरु की सेवा करे, वह मोक्ष में जाता है। दादाश्री ने अपनी पूरी जिन्दगी में यही ध्येय रखा था कि मुझे जो कोई मिला, उसे सुख प्राप्त होना ही चाहिए। अपने सुख के लिए विचार तक नहीं किया। पर सामनेवाले को क्या अड़चन है, उसकी अड़चन कैसे दूर हो, उस भावना में ही निरंतर रहते थे। तभी उनमें कारुण्यता प्रकट हुई थी । अद्भुत अध्यात्म विज्ञान प्रकट हुआ था। प्रस्तुत संकलन में दादाश्री तमाम दृष्टिकोण से जीवन का ध्येय किस प्रकार सिद्ध करें, जो सेवा परोपकार सहित हो, उसकी समझ सरल-सचोट दृष्टांतो द्वारा फिट करवाते हैं। जिन्हें जीवन में ध्येय रूप में आत्मसात् कर लें, तो मनुष्यपन की सार्थकता हुई कहलाएगी। - डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद

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