Book Title: Seva Paropkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 9
________________ सेवा-परोपकार सेवा-परोपकार सामनेवाला वाईल्ड (जंगली) हो जाए, फिर भी मुझे नहीं होना है, तो ऐसा हो सकता है। नहीं हो सकता? निश्चित करो तब से थोड़ाथोड़ा परिवर्तन होगा कि नहीं होगा? प्रश्नकर्ता : मुश्किल है पर। दादाश्री : ना! मुश्किल हो, फिर भी नक्की करें न, क्योंकि आप मनुष्य हो और भारत देश के मनुष्य हो। ऐसे-वैसे हो? ऋषि-मनियों के पुत्र हो आप! बहुत शक्तियाँ आपके पास पड़ी हुई हैं। वे आवृत होकर पड़ी हैं। वे आपके क्या काम आएँगी? इसलिए आप मेरे इस शब्द के अनुसार यदि तय करो कि मुझे यह करना ही है, तो वह अवश्य फलेगी, वर्ना ऐसे वाईल्डनेस कब तक करते रहोगे? और आपको सुख मिलता नहीं है। वाईल्डनेस में सुख मिलता है? प्रश्नकर्ता : ना। दादाश्री : उलटे दुःख ही निमंत्रित करते हो। परोपकार से पुण्य साथ में। जब तक मोक्ष ना मिले, तब तक पुण्य अकेला ही मित्र समान काम करता है और पाप-दुश्मन के समान काम करता है। अब आपको दुश्मन रखना है या मित्र रखना है? वह आपको जो अच्छा लगे. उसके अनुसार निश्चित करना है। और मित्र का संयोग कैसे हो, वह पूछ लेना और दुश्मन का संयोग कैसे जाए, वह भी पूछ लेना। यदि दुश्मन पसंद हो उसका संयोग कैसे हो यह पूछे, तो हम उसे कहेंगे कि जितना चाहे उतना उधार करके घी पीना, चाहे जहाँ भटकना, और तुझे ठीक लगे वैसे मजे उड़ाना, फिर आगे जो होगा देखा जाएगा! और पुण्यरूपी मित्र चाहिए तो हम बता दें कि भाई इस पेड़ के पास से सीख ले। कोई वृक्ष अपना फल खुद खा जाता है? कोई गुलाब अपना फूल खा जाता होगा? थोड़ा-सा तो खाता होगा, नहीं? हम नहीं हों तब रात को खा जाता होगा, नहीं? नहीं खा जाता? प्रश्नकर्ता : नहीं खाता। दादाश्री : ये पेड़-पौधे तो मनुष्यों को फल देने के लिए मनुष्यों की सेवा में हैं। अब पेड़ों को क्या मिलता है? उनकी ऊर्ध्वगति होती है और मनुष्य आगे बढ़ते हैं उनकी हेल्प लेकर! ऐसा मानो कि. हमने आम खाया, उसमें आम के पेड़ का क्या गया? और हमें क्या मिला? हमने आम खाया, इसलिए हमें आनंद हुआ। उससे हमारी वृत्तियाँ जो बदलीं, उससे हम सौ रुपये जितना अध्यात्म में कमाते हैं। अब आम खाया, इसलिए उसमें से पाँच प्रतिशत आम के पेड़ को आपके हिस्से में से जाता है और पँचानवे प्रतिशत आपके हिस्से में रहता है। वे लोग हमारे हिस्से में से पाँच प्रतिशत ले लेते हैं और वे बेचारे ऊँची गति में जाते है और हमारी अधोगति नहीं होती है, हम भी आगे बढ़ते हैं। इसलिए ये पेड़ कहते हैं कि हमारा सबकुछ भोगो, हर एक प्रकार के फल-फूल भोगो। योग उपयोग परोपकाराय इसलिए यह संसार आपको पुसाता हो, संसार आपको पसंद हो, संसार की चीजों की इच्छा हो, संसार के विषयों की वांछना हो तो इतना करो, 'योग उपयोग परोपकाराय।' योग यानी यह मन-वचन-काया का योग, और उपयोग यानी बुद्धि का उपयोग, मन का उपयोग करना, चित्त का उपयोग करना, ये सभी दूसरों के लिए उपयोग करना और दूसरों के लिए नहीं खर्च करते, तब भी हमारे लोग आखिर में घरवालों के लिए भी खर्च करते हैं न? इस कुतिया को खाने का क्यों मिलता है? जिन बच्चों के भीतर भगवान रहे हैं, उन बच्चों की वह सेवा करती है। इसलिए उसे सब मिल जाता है। इस आधार पर संसार सारा चल रहा है। इस

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