Book Title: Seva Paropkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 18
________________ सेवा-परोपकार २६ सेवा-परोपकार चाहिए? तब ठीक है! यह फ्री ऑफ कोस्ट मिले, वह कितनी अच्छी ! __इसलिए सेवाभाव निश्चित करो, मनुष्य मात्र की सेवा। क्योंकि 'हमने अस्पताल खोला' यानी हम जो विद्या जानते हैं, उस विद्या का सेवाभाव में उपयोग करना, यही हमारा हेतु होना चाहिए। उसके फल स्वरूप दूसरी चीजें तो फ्री ऑफ कोस्ट मिलती रहेंगी और लक्ष्मी की तो फिर कभी कमी ही नहीं रहेगी, और जो लक्ष्मी के लिए ही करने गए, उन्हें घाटा हुआ। हाँ, लक्ष्मी के लिए ही कारखाना बनाया तो बाय प्रोडक्ट तो रहा ही नहीं न! क्योंकि लक्ष्मी ही बाय प्रोडक्ट है, बाय प्रोडक्शन की! इसलिए हमें प्रोडक्शन तय करना है, फिर बाय प्रोडक्शन फ्री ऑफ कोस्ट मिलता रहेगा। जगत् कल्याण, वही प्रोडक्शन आत्मा प्राप्त करने के लिए जो किया जाता है, वह प्रोडक्शन है और उसके कारण बाय प्रोडक्ट मिलता है और संसार की सारी ज़रूरतें प्राप्त होती हैं। मैं अपना एक ही तरह का प्रोडक्शन रखता हूँ, 'जगत् परम शांति प्राप्त करे और कितने ही मोक्ष प्राप्त करें।' यह मेरा प्रोडक्शन और उसका बाय प्रोडक्शन मुझे मिलता ही रहता है। यह चाय-पानी हमें, आपसे कुछ अलग तरह के मिलते हैं। उसका क्या कारण है? आपकी तुलना में मेरा प्रोडक्शन उच्च कोटि का है। ऐसे आपका प्रोडक्शन उच्च कोटि का हो, तो बाय प्रोडक्शन भी उच्च कोटि का आएगा। हर एक कार्य का हेतु होता है। यदि सेवाभाव का हेतु होगा, तो लक्ष्मी 'बाय प्रोडक्ट' में मिलेगी ही। सेवा परोक्ष रूप से भगवान की दूसरा सारा प्रोडक्शन बाय प्रोडक्ट होता है। उसमें आपकी ज़रूरत की सारी चीजें मिलती रहती हैं और वे इज़ीली मिलती हैं। देखो न, यह प्रोडक्शन पैसों का किया, इसलिए आज पैसे इजीली मिलते नहीं। भागदौड़, हड़बड़ाते, हड़बड़ाते घूमते हों, ऐसे घूमते हैं और मुँह पर एरंडी का तेल चुपड़कर घूमते हों, ऐसे दिखते हैं। घर का सुंदर खानेपीने का है, कैसी सुविधा है, रास्ते कितने अच्छे है. रास्ते पर चलें तो पैर भी धूलवाले नहीं होते! इसलिए मनुष्यों की सेवा करो। मनुष्यों में भगवान विराजमान हैं। भगवान भीतर ही बेठे हैं। बाहर भगवान खोजने जाएँ तो वे मिलें ऐसा नहीं है। आप मनुष्यों के डॉक्टर हो, इसलिए आपको मनुष्यों की सेवा करने को कहता हूँ। जानवरों के डॉक्टर हों, तो उनको जानवरों की सेवा करने को कहूँ। जानवरों में भी भगवान विराजमान हैं,पर इन मनुष्यों में भगवान विशेष प्रकट हुए हैं। सेवा-परोपकार से आगे मोक्षमार्ग प्रश्नकर्ता : मोक्षमार्ग, समाजसेवा के मार्ग से बढ़कर कैसे है? यह ज़रा समझाइए। दादाश्री: समाज सेवक से हम परें कि आप कौन हो? तब कहें, मैं समाजसेवक हूँ। क्या कहता है? यही कहता है न या दूसरा कुछ कहता है? प्रश्नकर्ता : यही कहता है। दादाश्री : यानी 'मैं समाज सेवक हूँ', बोलना, वह इगोइज़म है और इस व्यक्ति से कहूँ कि, 'आप कौन है?' तब कहेंगे, 'बाहर पहचान के लिए चन्दूभाई और वास्तव में तो मैं शुद्धात्मा हूँ।' तो वह इगोइज़म बिना का है, विदाउट इगोइज़म। समाजसेवक का इगो (अहंकार) अच्छे कार्य के लिए है. पर है इगो। बुरे कार्य के लिए इगो हो, तब 'राक्षस' कहलाता है। अच्छे कार्य के लिए इगो हो, तब देव कहलाता है। इगो यानी इगो। इगो यानी भटकते

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