Book Title: Seva Paropkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 16
________________ सेवा-परोपकार सेवा-परोपकार दादाश्री : इतना करना न! समाजसेवा का अर्थ क्या? वह काफी कुछ 'माइ' तोड़ देती है। 'माइ' (मेरा) यदि संपूर्ण समाप्त हो जाए तो खुद परमात्मा है ! उसे फिर सुख बरतेगा ही न! सेवा में अहंकार प्रश्नकर्ता : तो इस जगत् के लिए हमें कुछ भी करने को रहता नहीं है? दादाश्री : आपको करने का था ही नहीं, यह तो अहंकार खड़ा हुआ है। ये मनुष्य अकेले ही अहंकार करते हैं, कर्त्तापन का। प्रश्नकर्ता : ये बहनजी डॉक्टर हैं। एक गरीब ‘पेशन्ट' आया, उसके प्रति अनुकंपा होती है, सुश्रूषा करती हैं। आपके कहे अनुसार तो फिर अनुकंपा करने का कोई सवाल ही नहीं रहता है न? दादाश्री : वह अनुकंपा भी कुदरती है, पर फिर अहंकार करता है कि मैंने कैसी अनुकंपा की! अहंकार नहीं करे तो कोई हर्ज नहीं। पर अहंकार किए बगैर रहता नहीं न! सेवा में समपर्णता प्रश्नकर्ता : इस संसार की सेवा में परमात्मा की सेवा का भाव रखकर सेवा करें, वह फ़र्ज़ में आता है न? दादाश्री : हाँ, उसका फल पुण्य मिलता है, मोक्ष नहीं मिलता। प्रश्नकर्ता : उसका श्रेय साक्षात्कारी परमात्मा को सौंप दें, फिर भी मोक्ष नहीं मिलेगा? दादाश्री : ऐसे फल सौंप दिया नहीं जाता है न किसी से। प्रश्नकर्ता : मानसिक समर्पण करें तो? दादाश्री : वह समर्पण करे तो भी कोई फल लेता नहीं है और कोई देता भी नहीं है। वे तो केवल बातें ही हैं। सच्चा धर्म तो 'ज्ञानी पुरुष' आत्मा प्रदान करें, तभी से अपने आप चलता रहता है, और व्यवहार धर्म तो हमें करना पड़ता है। सीखना पड़ता है। भौतिक समृद्धि, बाय प्रोडक्शन में प्रश्नकर्ता : भौतिक समृद्धि प्राप्त करने की इच्छा-प्रयत्न आध्यात्मिक विकास में बाधक होती है क्या? और बाधक होती है तो कैसे और बाधक नहीं हो तो कैसे? दादाश्री : भौतिक समृद्धि प्राप्त करनी हो तो हमें इस दिशा में जाना, आध्यात्मिक समृद्धि प्राप्त करनी हो तो इस दूसरी दिशा में जाना। हमें एक दिशा में जाना है, उसके बजाय हम यों दूसरी दिशा में जाएँ तो बाधक होगा या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ, वह बाधक कहलाएगा! दादाश्री : अर्थात् पूर्णतया बाधक है। आध्यात्मिक यह दिशा है तो भौतिक सामनेवाली दिशा है। प्रश्नकर्ता : पर भौतिक समृद्धि के बिना चले किस तरह? दादाश्री : भौतिक समृद्धि इस दुनिया में कोई कर पाया है क्या? सभी लोग भौतिक समृद्धि के पीछे पड़े हैं। हो गई है किसी की? प्रश्नकर्ता : थोड़े, कुछ की ही होती है, सभी की नहीं होती। दादाश्री : मनुष्य के हाथ में सत्ता नहीं है वह। जहाँ सत्ता नहीं है, वहाँ व्यर्थ शोर मचाएँ, उसका अर्थ क्या है? मीनिंगलेस!

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