Book Title: Seva Paropkar Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 8
________________ सेवा-परोपकार सेवा-परोपकार घर का दूसरों को दो, वहीं आनंद है। तब लोग ले लेना सीखते हैं! आप अपने लिए कुछ भी करना मत। लोगों के लिए ही करना तो अपने लिए कुछ भी करना नहीं पड़ेगा। ___ भाव में तो सौ प्रतिशत ये कोई पेड़ अपने फल खुद खाता है? नहीं! इसलिए ये पेड़ मनुष्य को उपदेश देते हैं कि आप अपने फल दूसरों को दो। आपको कुदरत देगी। नीम कड़वा ज़रूर लगता है, पर लोग उगाते हैं ज़रूर। क्योंकि उसके दूसरे लाभ हैं। वर्ना पौधा उखाड़ ही डालते। पर वह दूसरी तरह से लाभकारी है। वह ठंडक देता है, उसकी दवाई हितकारी है, उसका रस हितकारी है। सत्युग में लोग सामनेवाले को सुख पहुँचाने का ही प्रयोग करते थे। सारा दिन 'किसे ओब्लाइज करूँ' ऐसे ही विचार आते। बाहर कम हो तो हर्ज नहीं, मगर अंदर का भाव तो होना ही चाहिए अपना कि मेरे पास पैसे हैं, तो मुझे किसी का दुःख कम करना है। अक्ल हो, तो मुझे अक्ल से किसी को समझाकर भी उसका दुःख कम करना है। खुद के पास जो सिलक बाकी हो उससे हेल्प करना, या तो ओब्लाइजिंग नेचर तो रखना ही। ओब्लाइजिंग नेचर यानी क्या? दूसरों के लिए करने का स्वभाव! ओब्लाइजिंग नेचर हो, तो कितना अच्छा स्वभाव होता है ! पैसे देना ही ओब्लाइजिंग नेचर नहीं है। पैसे तो हमारे पास हों या न भी हों। पर हमारी इच्छा, ऐसी भावना हो कि इसे किस प्रकार हेल्प करूँ। हमारे घर कोई आया हो तो, उसकी कैसे कुछ मदद करूँ, ऐसी भावना होनी चाहिए। पैसे देने या नहीं देने, वह आपकी शक्ति के अनुसार है। पैसों से ही ओब्लाइज किया जाए ऐसा कुछ नहीं है, वह तो देनेवाले की शक्ति पर निर्भर करता है। खाली मन में भाव रखना है कि किस तरह 'ओब्लाइज' करूँ? इतना ही रहा करे, उतना देखना है। जीवन का ध्येय जिससे कुछ भी अपने ध्येय की तरफ पहुँच पाएँ। यह बिना ध्येय के जीवन का तो कोई अर्थ ही नहीं है। डॉलर आते हैं और खा-पीकर मजे उड़ाते हैं और सारा दिन चिंता-वरीज़ करते रहते हैं, यह जीवन का ध्येय कैसे कहलाए? मनुष्यपन मिला, वह व्यर्थ जाए, उसका क्या अर्थ है? इसलिए, मनुष्यपन मिलने के बाद अपने ध्येय तक पहुँचने के लिए क्या करना चाहिए? संसार के सुख चाहिएँ, भौतिक सुख, तो आपके पास जो कुछ हो वह दो लोगों को। कुछ भी सुख लोगों को दो, तो आप सुख की आशा कर सकते हो। नहीं तो सुख आपको मिलेगा नहीं और यदि दु:ख दिया तो आपको दु:ख मिलेगा। इस दुनिया का कानून एक ही वाक्य में समझ जाओ, इस संसार के सारे धर्मों का, कि यदि मनुष्य को सुख चाहिए, तो दूसरे जीवों को सुख दो और दु:ख चाहिए तो दुःख दो। जो अनुकूल आए वह दो। अब कोई कहेगा कि हम लोगों को सुख कैसे दें? हमारे पास पैसे नहीं हैं। तो पैसों से ही दिया जाए ऐसा नहीं है। उसके साथ ओब्लाइजिंग नेचर रख सकते हैं, उसके लिए फेरा लगा सकते हैं, उसे सलाह दे सकते हैं, कई तरह से ओब्लाइज कर सकते हैं, ऐसा है। धर्म अर्थात् भगवान की मूर्तियों के पास बैठे रहना, उसका नाम धर्म नहीं है। धर्म तो, अपने ध्येय तक पहुँचना, उसका नाम धर्म है। साथ-साथ एकाग्रता के लिए हम कोई भी साधन करें, वह अलग बात है, पर इसमें एकाग्रता करो तो सब एकाग्र ही है इसमें। ओब्लाइजिंग नेचर रखो, तय करो कि अब मुझे लोगों को ओब्लाइज ही करना है अब, तो आपमें परिवर्तन आ जाएगा। निश्चित करो कि मुझे वाईल्डनेस (जंगालियत) करनी नहीं है।Page Navigation
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