Book Title: Savivaran Gyanarnav Prakaranam Gyanbindu Prakaran
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 4
________________ प्रकाशकीय * है अन ते मुद्रित R प्रकाशोनी जैम विगेरे नामोथी पने अनुसरतुं GURUMEROLAGE प्रारंभ ऐंकार पद(सरस्वती बीजक)थी थाय छे तेम आ ग्रंथमा देखातुं होवाथी आ ग्रन्थ तेओश्रीनो ज छे ते निःसंदेह छे. निवेदनम् ॥ __ अर्णव- समुद्र जेम घणा तरंगोथी विभूषित होय छे तेम आ ज्ञानार्णवमा पण ग्रंथकार भगवंते अनेक तरंगोनी रचना करी छे, जो के आज ज्ञानार्णव नामनो एक ग्रंथ दिगम्बरीय साहित्यमा शुभचंद्राचार्य रचेलो विद्यमान छे अने ते मुद्रित पण RAMMARATHI छे, परंतु तेमां कलिकालसर्वज्ञ भगवंत श्रीहेमचंद्रसूरिजीनिर्मित योगशास्त्रना प्रकाशोनी जेम मुख्यतया योगस्वरूप विगेरेनुं निरूपण होवाथी तेने योगार्णव-योगप्रदीप-ध्यानशास्त्र विगेरे नामोथी ओळखाववामां आव्यो छे, ज्यारे आ श्री ज्ञानार्णव प्रकरण- ग्रन्थान्तर्गत अभिधेयने अनुसरतुंज निःशंक यथार्थ नाम राखवामां आव्युं छे. प्रस्तुत ग्रन्थकारे एक ज्ञानबिन्दु नामर्नु | प्रकरण पण रच्यु छे, जे आ साथे संयुक्त छ तेमा सामान्यतः चार ज्ञानोनुं निरूपण करी मुख्यत्वे केवळज्ञान केवळदर्शनना है विषयमा सम्मति गाथाओना अनुसारे अभेदपक्षनुं समर्थन कर्या बाद नयभेदथी विचारो आपतां शासनप्रभावक धुरंधर श्री सिद्धसेन दिवाकरजी, श्रीमल्लबादिजी, श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणजी ए त्रणेय प्रभावक आचार्यभगवंतोना विचारोनो समन्वय कों छे. आ ज्ञानार्णवमा पांचेय ज्ञानोनो यथार्थ तवरूप केवळ अमृत प्रवाहज भरेलो छे. आज्ञानार्णव ग्रंथर्नु अगाध गांभीर्य माहात्म्य यथार्थ वर्णवq ते विशाल अटवीनो पगथी चाली पार लेवा इच्छता पांगळा माणसनी जम अमो पामरनी बुद्धिने अगोचर छ. आ ग्रंथर्नु अगाध अर्थ गांभीर्य स्वरूप जाणी पोतेज स्वोपज्ञ विवरण रच्युं छे. परम खेदनो विषय तो एटलोज के आ ग्रंथ वचमा वचमां तेमज अंतभागमा त्रुटितरूपे उपलब्ध थयो छे. साथे परम हर्ष स्थान ए छे के-हजु पण भव्यजीवोना परमभाग्योदये शासनस्तंभ समा पूर्वेना महापुरुषोए रचेला जगदुपकारक शासन- HI REARSHRES

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