Book Title: Savivaran Gyanarnav Prakaranam Gyanbindu Prakaran Author(s): Yashovijay Gani Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha View full book textPage 3
________________ FORBA ॥ सविवरण श्रीज्ञानार्णव तथा ज्ञानबिन्दु अंगे प्रकाशकीय निवेदन ।। RRENERATORSHAIR ज्ञानपीयूषपिपासु सहृदय सौजन्यशालि विद्वानोना करकमलमां प्राप्त थतो एक जैन ज्ञानकोषोना भूगर्भमा छुपाइ रहेल अणमोल रत्न तुल्य स्वोपज्ञ विवरण समेत श्री ज्ञानार्णव नामनो आ प्रकरणग्रंथ प्रतिभाप्रभावथी पूर्व श्रुत. ल केवली भगवंतोनी स्मृति करावनार अनेक लक्ष श्लोकोप्रमाण ग्रंथोना प्रणेता, भवविरहाकविभूषित चौदसो चुम्मालीश ग्रंथ. | प्रासादोना सूत्रधार भगवान् श्रीहरिभद्रसूरिजीना लघु बांधव तरीके ख्याति पामेला, न्यायविशारद, न्यायाचार्य, कूर्चालसरस्वती विरुदधारक महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजे रचलो छे. ते निर्विवादनिर्णीत सिद्ध वस्तु आग्रन्थने मंगलपच "ऐन्दवीं तां कलां स्मृत्वा, धीमाच्यायविशारदः । ज्ञानार्णवसुधास्नानपवित्राः कुरुते गिरः ॥१॥" तथा प्रथम तरंगना अन्तिम प्रशस्तिपद्य 'प्रौढिं ये विवुधेषु जीतविजयप्राज्ञाः परामैयरु-स्वत्सातीर्थ्यभृतो नयादिविजयप्राज्ञाः श्रयन्ति श्रियम् ॥ तेषां न्यायविशारदेन शिशुना ज्ञानार्णवे निर्मिते, पूर्णो माष्यवचोमृतैरतितरामायस्तरङ्गोऽभवत् ॥ २॥" तथा तेओश्रीना पोताना ज रचेला शाखवार्तासमुच्चयबृत्ति,स्याद्वादकल्पलता, न्यायालोक, ज्ञानविन्दु विगरे अनेक ग्रन्थोमा "अधिक मत्कृतज्ञानार्णवादवसेयं" इत्यादि वाक्यो पूर्ण साक्षि आपे छे. वळी प्रायः एकाद ग्रंथ अपवादरूप बाद करी तेओश्रीना सर्व ग्रंथोनी B ASABHA ADHAPage Navigation
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