Book Title: Savivaran Gyanarnav Prakaranam Gyanbindu Prakaran
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 9
________________ AAAAPSPSE जं भासइ तंपि नओ १५३ २. १७ | अह सुयओ विविवेगं १६५ २४ २० | उग्गहइहवाओ य १७८ २८ अन्ने मन्नंति मह १५४ २२ १४ मइकाले वि जइ सुर्य १६६ २४ २२ | मत्थाणं उम्गहणं १७९ २८ भावसुआभावाओ १५५ २२ १६ मह सुयनिस्सियमक्खर १६७ २४ २४ सामण्णत्थावग्गहण १८० २८ कप्पेज व सो भाव १५६ २२ २३ भरनित्थरणसमत्या ९४३ २४ २८ सामनविसेसस्स वि १८१ २८ असुयक्खरपरिणामा १५७ २२ २४ जह तं सुयेण ण तओ १६८ २५ ५ ईहा संसयमेत्तं १८२ २९ इह इं जेणाहिगओ १५८ २२ २६ पुचि सुयपरिकम्मिा १६९ २९ . जमणेगत्यालंबण १८३ २९ ण य दव्वभावमेत्तेवि १५८ २३ ४ उभयं भावक्खरओ १७० २५ १६ | तं चिय सयत्यहेऊ १८४ २९ जह बग्गा सुंवत्तण १५९ ३३ ५ सपरपञ्चायणमओ १५१ २६ ३| केइ तयन्नविसेसा १८५ २९ अह उवयारो कीरइ १६० २३ कासइ तयन्नवइरेग १८६ ३० भावसुयं तेण मइ १६१ २३ ९ न परप्पवोहयाई १३ २६ ६ सयो वि य सोवाओ १८७ ३० अन्ने अणक्खरक्खर १६२ २३ २९ ! दब्बसुभयसाहारण १७५ २६ २७ काणुवओगंमि घिई १८८ ३० जइ महरणक्खरश्चिय १६३ २३ २७ | सा वा सहत्थो थिय १.५ २६ २८ | नणु साऽवायम्भहिया १८९ ३१ सुयनिस्सियघयणाओ १६४ २४ ५ | महसुमनामविसेसो १७६ २७ २४ तं इच्छंतस्स तुहं १९.३१ UAROBAR ३

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