Book Title: Savivaran Gyanarnav Prakaranam Gyanbindu Prakaran
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 11
________________ BROBARHETASKARE सिमिणे वि सुरयसंगम २२८ ४४ ९ । तद्देतचिंतणे होज २४११८ १५ नइ सद्बुद्धिमत्तय २५४ ५२ | सो अझवसाणकओ २२९ ४४११ | समये समये गिण्हइ २४२ ४८ २१ | थोवमियं नाबाओ २५५ ५२ १३ सुरयपडिबत्ति रइसुह २३० ४४ १२ होइ मणोवावारो २४३ ४८ इय सुवहुणाथि काले २५६ ५२ नणु सिमिणगओ वि कोइ २३१ ४४ २० नेयाउ च्चिय जं सो २४४ ४९ १२ किं सदो किमसद्दो २५७ ५२ जं पुण विन्नाणं तप्फलं २३२ ४४ २२ जह नयणिदियमपत्त २४५ ४९ २१ | किं तं पुरुवं गहियं २५८ ५३ १ देहप्फुरणं सहसोइयं च २३३ ४४ २५ विसयपरिमाणमनियय २४६ ४९ २६ | अत्थोग्गहओ पुब्वं २५९,५३ सिमिणमिव मन्नमाणस्स २३४ ४५ ६ अस्थगहणेसु मुज्झइ २४७ ५० ६ | जइ सद्दोत्ति न गहियं २६० १३ १५ पोग्गलमोअगदन्ते २३५ ४७ १ कम्मोदयओ व सहा २४८ ५० ११ | सव्यस्थ देसयंतो २६१ ५३ २० जह देहरथं चक्खु २३५ ४७ सामत्याभावाओ २४९ ५० अहवसुए च्चिय भणिय २६२ ५३ २४ विसयमसंपत्तस्स वि २३७ ४७ तोए ण मछग पिव २५० ५० अहव मइ पुवं चिय २६३ ५४ ।। समयेमु मणोदव्बाई २३८ ४७ २. दव्वं भाणं पूरिय २५१ ५१ ५ अस्थि तथं अव्वत्तं २६१ ५४ | देहादणिग्गयस्स वि २३९ ४७ २७ | सामन्नमणिद्देसं. २५२ ५१ ११ अथोत्ति विसयगहणं २६५ ५४ | गिज्झस्स जणाणं २४० ४८ ३ । सद्दे त्ति भणइ वत्ता २५३ ५१ २० । जेणत्थोग्गहकाले २६६ ५४ २० ORROR

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