Book Title: Savivaran Gyanarnav Prakaranam Gyanbindu Prakaran
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 6
________________ प्रकाशकीय ॥ २ ॥ བོར༔ 4% 4 མ ཐུད པམེང་4དུ་བེད་པུང་པཆུ་སཏ आमुद्रित ८७ पत्र एटले १७४ पृष्ठ प्रमाण ग्रंथ भागमां मतिज्ञान प्ररूपणा पण अधूरी रही छे. शेष श्रुतज्ञानादि प्ररूपणानो तो अव्यक्त गंध पण आवी शक्यो नथी जेथी तेना जिज्ञासुओनी तत्रबोधेच्छा पूर्ण करवाने पूज्यचरण तेजश्रीनुं प्रणीत ज्ञानार्णव पीयूषना बिन्दुतुल्य (आपणा माटे तो ते पण अर्णवांशज छे) ज्ञानविन्दु नामनुं प्रकरण जोडवामां आव्युं छे. आ बेउ थम आवतो विषय प्रतिपृष्ठ आपेल होवाथी जुदो प्रयास कर्यो नथी. मात्र एकज प्रति उपरथी छपाएल आ ग्रन्थोना संशोधनमां पूज्य मुनिमहाराजश्री शिवानन्दविजयजी विगेरेए यथाक्षयोपशम प्रयास कर्यो छे. शुद्धिपत्रक आप्युं छे. छतां पण छद्मस्थ जीवोने भूल थवी सुलभज छे, विगेरे कारणोथी टाइपोना वर्णाना स्थानथी खसी जवाना कारणथी, ह्रस्व, दीर्घ, इकार, एकार, ऐकार, ओकार, औकार रेफ विगेरेनी उपरनी पांखडीओ खसी जवाथी तेम ज घ+ध, प+ष-व-व-म+भ-य-थ विगेरे प्रायः समान आकृतियाळा वर्णोंना फेरफार थई जवा विगेरे कारणोथी थएली अशुद्धिओ विद्वान् पुरुषो सुधारी वांचशे अने ते बदल अमोने श्री संघ क्षमा आपशे, तेम श्री श्रमण संघ पासे नम्रभावे क्षमा प्रार्थनापूर्वक आ निवेदन पूर्ण करवामां आवे छे. लि. श्रीसंघ चरणकमलोपासिका श्री जैन ग्रंथप्रकाशक सभा - राजनगर ( अमदावाद ) निवेदनम् ॥ ॥ २ ॥

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