Book Title: Saptabhangiprabha
Author(s): Nemisuri, Shilchandrasuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 4
________________ शताब्दी समर्चना जैन शासनना महान् ज्योतिर्धर शासनसम्राट् आचार्य श्रीविजयनेमिसूरिजी महाराजनुं स्थान, अनेक दृष्टिए, अनन्य अने विशिष्ट छे. सामान्यतः आधुनिक समाजमां तेमनी ख्याति तीर्थोद्धारक तेमज आदर्श अनुशासक आचार्य तरीकेनी छे. परन्तु ते तो तेमना जीवननी अनेकानेक विशेषताओ पैकी बे विशेषताओ ज छे. आ बे उपरांत ते ओश्रीनी अनेक विशेषताओ हती: तेओ जीवदयाना ज्योतिर्धर हता; संघ अने समाजमां संप- सलाह- समाधान वृत्तिना प्रखर पुरस्कर्ता हता; वीसरायेली स्वाध्याय अने अध्ययननी उच्च प्रणालिकाना प्रणेता हता; सेंकडो संयमी अने विद्वान् शिष्योना गुरु हता; कठोर आचारपालनना आग्रही हता; तेमनी देशनापद्धति शासननी शुद्ध अने शास्त्रीय शैलीने वरेली हती; सुविहित गीतार्थ जैनाचार्योनी अखण्ड परंपराना तेओ जळहळता सितारा हता; शास्त्र, सिद्धान्त अने सामाचारीनी वफादारी तेओनो स्वभाव हतो; नैष्ठिक ब्रह्मचर्यनी साधना अने सिद्धिने वरेला तेओ सिद्धपुरुष हता; जैन संघना तेओ नेतृत्वसंपन्न युगपुरुष हता. ट्रंकमां, तेओनी विशेषताओ अमाप हती. मनी वे विशिष्ट विशेषताओ आ हती : ज्ञानोद्धार अने शास्त्रसर्जन. आ बे बावतोथी अत्यारना लोको भाग्ये ज परिचित छे. आचार्यश्रीए पोताना मुनिजीवनना प्रारंभिक दायका ओमां शास्त्रोनुं गंभीर अने ऊंडुं अध्ययन कर्तुं छे. व्याकरण, न्याय प्राचीन-नवीन वन्ने, काव्य, साहित्य, छन्द, अलंकार, षड्दर्शनो, जिनागमो तेमज विशेषतः श्रीहरिभद्रसूरि तथा उपाध्याय यशोविजयजीना ग्रंथो, आ वधांनुं तेमणे सांगोपांग अध्ययन करेलुं. एटलुं ज नहि, पछीथी आ ग्रंथोनुं अध्यापन पण वर्षो सुधी करेलुं. शिष्योने भणावती वखतनी तेमनी कठोरता जगजाणीती छे. आ पछी तेमनी प्रेरणात्मक भावनाथी स्थपायेल श्रीजैन तत्त्वविवेचक सभा तथा श्रीजैन ग्रन्थप्रकाशक सभा जेवी ख्यातनाम संस्थाओना आश्रये, तेमना द्वारा तथा तेमना विद्वान् शिष्यगण द्वारा श्रीहरिभद्रसूरि, श्रीयशोविजयजी तथा श्रीसिद्धसेनदिवाकरजी अने श्रीहेमचन्द्राचार्य जेवा महान् श्रुतधर भगवंतोए रचेला शास्त्रग्रंथोनुं संशोधन-संपादन तथा प्रकाशननुं महत् कार्य थयुं, जे वीसमी सदीमां थयेल सर्वप्रथम भगीरथ श्रुतकार्य हतुं. पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्रीजिनविजयजीए आचार्य श्रीना आ ज्ञानकार्यने अंजलि आपतां लख्युं छे के "तेओ श्री द्वारा जैन समुदायमां सर्वप्रथम जैन साहित्यना प्रकाशननो पुनित प्रारंभ पण विशेषरूपे थयो हतो. तेओश्रीना प्रेरणादायक साहित्यप्रकाशनना शुभ प्रयासथी ज बीजा बीजा अनेक शास्त्रप्रेमी अने साहित्यभक्त निव पण दिशामा उल्लेखनीय कार्य करता रह्या छे. ए रीते जैन धर्मनी तथा सम्यग् ज्ञाननी सुरक्षा तथा प्रसिद्धि करनार आ वीसमी सदीना तेओ श्री सर्वप्रधान मुनिगणनायक यथार्थ आचार्य बन्या हता. " आचार्यश्रीनुं बीजुं विशिष्ट कार्य हतुं तेओश्रीनुं शास्त्रसर्जन. पोतानी विलक्षण सर्जकप्रतिभाना वळे तेओए लगभग सोळेक ग्रंथोनी रचना करी हती. जेमां सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनने अनुसरता चारेक व्याकरणग्रंथो, तथा जैन तर्कग्रंथो तथा तेनां विवरणोना ग्रंथोनो मुख्यत्वे समावेश थाय छे. आ ग्रंथो जे ते समये प्रकाशित थयेला हता, पण ते आजे अलभ्य ज नहि, अज्ञातप्राय पण छे. अमुक पुस्तको तो मुद्रित होवा छतां प्राप्य थतां नथी ! आ अमारी कमनसीबीनी वात छे. - Jain Education International (iii) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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