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आकार ( से० मी०)
८ (क)
२५×१३
११.५९.५
१३x२३
२१x६.५
२३×१०
१८४६
१९x११
१८x११
१४४१०
२३×१२
२६.८×११.६
पृ० सं०
८ (ख) ८ (ग) ८ (घ)
१३ १.२ ३०
१२ १३ २०
२ २०
१
१९
१८
१
२८
| पंक्ति | अक्षर | दशा / परिमाण • प्र० पृ० प्र० पं०
(अनु० छन्द में)
९
४
२४ ५x१४.५ ६९
७६ ९
८२
२४.५x१०.५ |११०
११
८
७
१२
८
८
-७
८
३०
१६ अपूर्ण / २०
२०
२०
२८ पूर्ण / १३३
पूर्ण / १४६
पूर्ण / ९७
३०
२७
पूर्ण / १०
३२ पूर्ण / १२
७ ३०
अपूर्ण / ७९
१६ पूर्ण / ११२
पूर्ण / ४२७
पूर्ण / ३०
२९ | पूर्ण / ५९५
कर्मकाण्ड
अपूर्ण / ४०८
पूर्ण / ७२१
लिपिकाल
१०
१८२० वि० (शाके १६८५)
T
I
१८७८ वि०
१९५४ वि० (चैत्र शुक्ल अष्टमी
मंदवार)
१९३० वि०
विशेष विवरण
११
खण्डित
४२१
चार अध्यायों में पूर्णं पितरों एवं ऋषियों के प्रसादनार्थ पवमान विधि का उल्लेख
इसमें दो काण्ड पूर्ण तथा तीसरे का केवल प्रारम्भ का अंश समुपलब्ध है । इसमें संस्कारों, पञ्चमहायज्ञों तथा पाकयज्ञों आदि का विवेचन किया गया है यह तीन काण्डों में पूर्ण संस्कारादि विषयक पारस्करगृह्यसूत्र
तीन काण्डों में प्रतिपादित इस ग्रन्थ में संस्कारादि गृहस्थजीवन से सम्बद्ध विविध कर्मकाण्डों का वर्णन किया गया है।