Book Title: Sanskrit Jain Nitya Path Sangraha
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 144
________________ .. १३८ - ... मोक्षधास्त्रम् वा॥१०॥ मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थ्यानि च सत्त्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनयेषु ॥११॥ जंगत्कायखभावौ वा संवेगवैराग्याथ ॥ १२ ॥ प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा ॥१३॥ असदभिधानमनृतं ॥ १४ ॥ अदत्तादानं स्तेयं ॥१५॥मैथुनमंब्रह्मः ॥ १६॥ मूर्छा परिग्रहः ॥१७॥ निःशल्यो व्रती ॥१८॥ आगार्यनगारश्च ॥ १९॥ अणुव्रतोज्गारी ॥२०॥ दिग्देशानर्थदंडविरतिसामायिकपोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागवतसंपन्नश्च ॥ २१ ॥ मारणांतिकी

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