Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 04
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 7
________________ ४ * प्रकाशक का भावविश्व जमाना गुजर गया पूर्वकालीन तीन ( १-२-५) खण्डों के प्रकाशन को । अब सन्मतितर्कप्रकरण का चतुर्थ खण्ड प्रकाशित करते हुए हमारे आनन्द को कोई सीमा नहीं । प. पू. स्व. आचार्य गुरुदेव श्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. के वर्त्तमान काल में अगणित उपकारों को याद करते हैं नेत्र सजल हो जाते हैं । इस महापुरुष का यह जन्मशताब्दी वर्ष चल रहा है । उदार एवं विशाल दृष्टि रख कर इस महापुरुष ने श्री जैनशासन जैन संघ के उत्कर्ष के लिये संकुचित दृष्टिकोण को छोड कर जो प्रचण्ड पुरुषार्थ किया है उसे कोई भुला नहीं सकता । आपने स्वयं निर्मल - पवित्र स्वच्छ संयम का पाँच महाव्रतों का पालन किया एवं सैंकडों पुण्यात्माओं को संयमपथ के प्रवासी बना दिये । उपदेश साहित्य के क्षेत्र में आप अजोड बने रहे। जैन धार्मिक शिक्षण शिबिर के माध्यम से आपने हजारों गुमराह युवाओं को व्यसन एवं उन्मार्ग की बदी से छुडाये और परोपकार - धर्मश्रद्धा - सदाचार के सन्मार्ग में जोड दिये । आपने ही मुंबई वि.सं. २०३६-३७ वर्षों में सन्मतितर्क प्रकरण के हिन्दी विवेचन के लिये विक्रमी कदम उठाया था। समय के अभाव में आपने इस महाकाय कार्य को मुनि जयसुंदर विजयजी को सौंप दिया यह आप की अमूल्य दीर्घदृष्टि थी । प्रथम खंड श्री मोतीशा लालबाग जैन ट्रस्ट (भूलेश्वर - मुंबई) की ओर से प्रकाशित किया गया था । शेष दो खंड हमारे दिव्यदर्शन ट्रस्ट की ओर से प्रकाशित हुआ था । श्रुतोद्धार के इसी सिलसिले में आज यह चतुर्थखण्ड प्रकाशित हो रहा है । हम सदैव ऋणी रहेंगे सिद्धान्तमहोदधि प.पू. आ. श्री प्रेमसूरीश्वरजी म. सा. - न्यायविशारद प.पू. आ. श्री भुवनभानु सू. म. सा. एवं सुविशाल गच्छाधिपति प.पू. आ. श्री जयघोष सू.म. सा. के, जिन की असीमकृपा से हम इस ग्रन्थराज के प्रकाशन के लिये सक्षम बने हैं । कुमारपाल वि. शाह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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