Book Title: Sanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Sangh Sabha

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Page 12
________________ श्री राणकपुरतीर्थ ] का रुपया पुनः लौटा देगा । सं० धरणा के आग्रह पर शाहजादा गजनीखाँ कुछ दिनों के लिये नांदिया में ही ठहरा रहा। इन्हीं दिनों में मांडवगढ़ से कुछ यवन सामंत शाहजादा को ढूंढते २ नांदिया में आ पहुँचे और उन्होंने शाहजादा को मांडवगढ़ चलने के लिये आग्रह किया। सं० धरणा ने शाहजादा गजनीखाँ को समझा बुझा कर मांडवगढ़ जाने के लिये प्रसन्न कर लिया और शाहजादा अपने साथियों सहित मांडवगढ़ अपने पिता के पास में लौट गया । बादशाह हुसंगशाह ने जब यह सुना कि सं० धरणा ने उसके पुत्र गजनीखाँ का बड़ा सत्कार किया और उसको समझा कर पुनः मांडवगढ़ जाने के लिए प्रसन्न किया वह अत्यन्त ही प्रसन्न हुआ और सं० धरणा को मांडवगढ़ बुलाने का विचार करने लगा। इतने में वह अकस्मात् बीमार पड़ गया और सं० धरणा को नहीं बुला सका। बाली पौषधशाला के कुलंगुरु भट्टारक मियाचन्द्रजी के पास में वि० संवत् १४२५ में पुनर्लिखित सं० धरणाशाह के वंशजों की एक लंबी ख्यातप्रति है। उसमें सं० कुरपाल के तीन पुत्रों का होना लिखा है। सर्व से बड़ा पुत्र समर्थमल था । समर्थमल की स्त्री का नाम सुहादेवी था और सुहादेवी के सूजा नामक पुत्र हुआ था। आगे समर्थमल का वंश नहीं चला। हो सकता है सूजा बालवय में अथवा निस्सन्तान मर गया हो और राणकपुर-धरणविहार-त्रैलोक्यदीपक मन्दिर की प्रतिष्ठा के शुभावसर तक इनमें से कोई जीवित नहीं रहा हो। दूसरी बात सं० धरणा का अपरनाम धर्मा भी लिखा है। तीसरी बात सं० धरणा के द्वितीया स्त्री चन्द्रादेवी नामा और थी । वह भी प्रतिष्ठोत्सव तक सम्भव है निस्सन्तान मर गई हो।

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