Book Title: Sanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Sangh Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ २२ ] [ श्रेष्ठ संघवी धरणा यह प्रतीक सैकड़ों वर्षों और तद्विषयक इतिहास अनन्त वर्षों तक उसके नाम और गौरव को संसार में प्रकाशित करता रहेगा । जिनालय के चार सिंहद्वारों की रचना चतुष्क की चारों बाहों पर मध्य में चार द्वार बने हुये हैं । द्वारों की प्रतोलियाँ अन्दर की ओर हैं । द्वारों के नाम दिशाओं के नाम पर ही हैं । पश्चिमोत्तर द्वार प्रमुख द्वार है । प्रत्येक द्वार की बनावट एक-सी है । प्रत्येक द्वार के आगे क्रमशः बड़ी और छोटी दो २ चतुष्किका हैं, जिन पर क्रमशः त्रि० और द्वि० मंजली गुम्बजदार महालय हैं । फिर सीढ़ियाँ हैं, जो जमीन के तल तक बनी हुई हैं । चारों द्वारों की प्रतोलियों की बनावट एक-सी है। प्रतोलियों का आँगन भाग छतदार है और जिनालय के भीतर प्रवेश करने के लिये सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। चारों प्रतोलियों का यह भाग खुला हुआ है और भ्रमती से जाकर मिलता है । इस खुले हुये भाग के उपर विशाल गुम्बज है । चारों प्रतोलियों के उपर के गुम्बजों में वलयाकार अद्भुत कला कृति है । जिसको देखते ही बनता है। चार प्रतोलियों का वर्णन. इन वलयों की कला को देख कर मुझको मैन्चेस्टर की जगत-विख्यात फालियों का स्मरण हो आया, जो मैंने अनेक बड़े २ अद्भुत संग्रहालयों में देखीं । परन्तु इस कर-कला-कृति की सजीवता और चिर- नवीनता और शिल्पकार की टाँकी का जादू उस यन्त्र-कला-कृति में कहाँ ?

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42