Book Title: Sanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Sangh Sabha

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Page 41
________________ २८] [श्रेष्ठि संघवी धरणा सं० धरणा के वंशज राणकपुर नगर कुछ वर्षों पश्चात् उजड़ हो गया। सं० धरणा और रत्नाशाह का परिवार सादड़ी में, जो राणकपुर से ठीक उत्तर में ७ मील के अन्तर पर बसा है जा बसा। फिर सादड़ी से सं० धरणा का परिवार घाणेराव में और सं० रत्ना का मांडवगढ़ (मालवप्रान्त की राजधानी) में जा बसा । घाणेराव के रहने वाले शाह नथमल माणकचन्द्रजी, चन्दनमल रत्नाजी, छगनलाल हंसाजी, हरकचन्द्र गंगारामजी, नथमलजी नवलाजी सं० धरणाशाह के वंशज हैं । त्रैलोक्यदीपक धरणविहार के उपर ध्वजा-दंड चढ़ाने का अधिकार उपरोक्त परिवारों को आज भी प्राप्त है। क्रम-क्रम से प्रत्येक परिवार प्रति वर्ष बिंबस्थापना दिवस फा० ऋ० १० के दिन (राजस्थानी चैत्र कृ० १०) ध्वजा चढ़ाता है और प्रथम पूजा भी इनकी ही ओर से करवाई जाती है। इस परिवार का एक और घर मेदप्राटप्रदेश के राज्य में ग्राम गुदा में भी रहता है। -

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