________________ प्राग्वाट-इतिहास (सचित्र) गत 6 वर्षों से जिस विश्रुत प्राग्वाट-इतिहास के पूर्वार्द्ध खण्ड की रचना की जा रही थी, शुभ समाचार विज्ञप्त करते हुये अत्यन्त आनन्द हो रहा है कि वह माघ शुक्ला त्रयोदशी (संवत् वर्तमान्) से छपना प्रारंभ हो गया है। उक्त इतिहास को अगर गौरवशाली एक जैनज्ञाति का ही इतिहास कह दिया जाय तो और अधिक संगत होगा / इस इतिहास में 2500 वर्ष पूर्व से वि० सं० 1600 तक का प्राग्वाटज्ञाति अर्थात् पौरवालज्ञाति का वर्णन प्रमाणित एवं प्राचीन ऐतिहासिक एवं साधन-सामग्री के आधार पर लिखा गया है। श्वेताम्बरतीर्थों में से तथा जगद्विश्रुत जैनमन्दिरों में से धिकांश का वर्णन इसमें आ गया है। अनेक प्रसिद्ध रणवीरों का, महामंत्रियों का, दंडनायकों का. महाकवियों, विद्वानों, श्रीमंत श्रेष्ठियों, दानवीरों, धर्मात्माओं का तथा शासन के तेजस्वी सेवक साधु, प्राचार्यों का, ज्ञानभंडार के संस्थापकों का भी यथाप्राप्त पूरा 2 वर्णन आया है / इसमें जैनतीर्थों एवं मन्दिरों के स्थापत्यकला-सम्बन्धी भी लगभग 80 से ऊपर चित्र बढ़िया आर्ट पेपर पर दिये गये हैं, जो भारतीय स्थापत्यकला के प्रतिजैन बन्धुओं के अनुराग को समझने में अधिक सहायभूत हो सकते हैं। इतिहास की छपाई 23" x 36" ऑफसेट 44 पौंड के कागज पर ग्रेट-टाइप में बहुत ही आकर्षक एवं शुद्धतम करवाई जा रही है। इतिहास के दोनों भागों का मूल्य समिति ने 31) निर्धारित किया है / रु० 31) भेज कर अग्रिम ग्राहक बनने वाले सज्जनों एवं संस्थाओं को दोनों भाग मुफ्त डाक-व्यय भेजे जावेंगे। अग्रिम ग्राहक बनने के लिये निम्न पते पर पत्र-व्यवहार करें। मंत्री : श्री प्राग्वाट-इतिहास प्रकाशक-समिति, स्टे० राणी (राजस्थान)