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श्री राणकपुरतीर्थ ]
[२३ सरकार
प्रतोलियों के उपर के . दक्षिण प्रतोली के उपर के महालय में महालयों का वर्णन एक प्रोत्थित वेदिका पर श्रेष्ठि-प्रतिमा
है, जो खड़ी हुई है। उस पर सं० १७२३ का लेख है। पूर्व और पश्चिम प्रतोलियों के उपर के महालयों में गजारूढ़ माता मरुदेवी की प्रतिमा है, जिसकी दृष्टि सीधी मूलमन्दिर में प्रतिष्ठित आदिनाथ बिंब पर पड़ती है। उत्तर द्वार की प्रतोली के उपर के महालय में सहस्रकुटि हैं, जिसको राणकस्तम्भ भी कहते हैं । यह अपूर्ण हैं । यह क्यों नहीं पूर्ण किया जा सका, उसके विषय में अनेक दन्त-कथायें प्रचलित हैं। इस सहस्रकुटि-स्तम्भ पर छोटे-बड़े अनेक शिलालेख पतली पट्टियों पर उत्कीर्णित हैं। जिनसे प्रकट होता है कि इस स्तम्भ के भिन्न २ भाग तथा प्रभागों को भिन्न २ व्यक्तियों ने बनवाया। जैसी दन्त-कथा प्रचलित है कि इसका बनाने का विचार प्रतापी महाराणा कुम्भकर्ण ने किया और व्यय अधिक होता देखकर प्रारम्भ करके अथवा कुछ भाग बन जाने पर ही छोड़ दिया। प्रकोष्ठ देवकुलिकाओं प्रकोष्ठ चतुष्क पर बाहिर की ओर कुछ और भ्रमती का वर्णन. इश्च स्थान छोड़कर चारों ओर चतुष्क
की चारों बाहों पर प्रकोष्ठ बनाया गया है, जिसमें चारों प्रमुख द्वार चारों दिशाओं में खुलते हैं। द्वारों द्वारा अधिकृत भाग छोड़ कर प्रकोष्ठ के शेष भाग में देवकुलिकायें
सं०१७२३ का लेख पूरा पढ़ा नहीं जाता है। पत्थर में खड्डे पड़ गये हैं और अक्षर मिट गये हैं । सं० १५५१ वर्षे वैसाख बदि ११ सोमे सं० जावड़ भा० जसमादे पु० गुणराज भा० सुगतादे पु० जगमाल भा० श्री वछ करावित। ... . .....